________________
[७७
शक्तिशाली एक गरुड़वेग नामक राजा वहाँ राज्य करते थे । उनके चारितसम्पन्ना पत्नी का नाम था धृतिसेना । उसने चन्द्रतिलक और सूर्य तिलक नामक दो राजपुत्रों को जन्म दिया । उनके जन्म के पूर्व उसने अपनी गोद में चन्द्र-सूर्य को देखा था । इसीलिए उनका यह नाम रखा गया । बड़े होने पर वे एक दिन मेरुपर्वत पर गए। वहाँ शिखर स्थित शाश्वत अर्हतों की वन्दना की । तदुपरान्त इधर-उधर भ्रमण करते हुए उन्होंने नन्दनवन की स्वर्ण शिला पर खड़े चारण मुनि सागरचन्द्र को देखा । मुनि को वन्दना - नमस्कार कर और प्रदक्षिणा देकर युक्तकर होकर उनकी देशना सुनी । ( श्लोक १०८ - ११३) देशना शेष होने पर वे पुनः मुनि को वन्दना कर बोले'सौभाग्यवश ही आज अज्ञान अन्धकार दूर करने में मशाल से आपको देखा है । भगवन्, आप हमारे पूर्व जन्म बताएँ । सूर्योदय की भाँति आप जैसे व्यक्तियों का ज्ञान अन्य के कल्याण के लिए ही होता है ।' ( श्लोक ११४ - ११५)
मुनि ने कहना आरम्भ किया - घातकी खण्ड के पूर्व ऐरावत क्षेत्र में वज्रपुर नामक एक नगर था । वहां आर्त्तजनों को अभय प्रदान करने वाले अभयघोष नामक एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम था सुवर्णतिलका । विजय और वैजयन्त नामक उनके दो पुत्र थे । क्रमशः शिक्षा प्राप्त करते हुए वे यौवन को प्राप्त हुए 1 ''
( श्लोक ११६-११८) 'उसी समय उसी क्षेत्र में स्वर्णद्रुम नामक नगर में शङ्ख-से शुभ्र गुण युक्त शङ्ख नामक राजा राज्य करते थे । उनकी रानी पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न पृथ्वीसेना नामक एक कन्या थी । उस कन्या के जन्म के पूर्व रानी पृथ्वी ने स्वप्न में अपनी गोद में एक पुष्पदाम देखा | पुष्पदाम- सी कोमल पृथ्वीसेना क्रमशः समस्त कलाएँ हस्तगत कर यौवन को प्राप्त हुई । कला शिक्षा से संस्कारित होकर उसके रूप और गुण में वृद्धि हो गई । अभयघोष को राजा शङ्ख ने उसके उपयुक्त वर समझ कर उनसे उसका विवाह कर दिया । रमासह रमापति की तरह अभयघोष पृथ्वीसेना के साथ यौवन सुख भोग करने लगे । ( श्लोक ११९ - १२३ ) 'एक दिन वसन्त ऋतु में दासी वसन्तिका पुष्प सम्भार लिए