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हरण करेगा।'
(श्लोक १-७) सहस्रायुध का जीव | वेयक विमान से च्यत होकर मनोरमा के गर्भ में आया। उसने स्वप्न में घण्टिकायुक्त ध्वज-पताका शोभित रथ को अपने मुख में प्रवेश करते देखा । उसने भी दूसरे दिन सुबह राजा से यह बात कही-राजा बोले-'तुम्हारा पुत्र महारथी एवं महान योद्धा होगा।'
(श्लोक ८-१०) यथा समय दोनों ने सूर्य और चन्द्र की भाँति क्रमशः दो पुत्रों को जन्म दिया। एक शुभ दिन राजा ने स्वप्न दर्शन के अनुसार प्रियमती के पुत्र का नाम रखा मेंघरथ और मनोरमा के पुत्र का नाम रखा दृढ़रथ । मेघरथ और दृढ़रथ परस्पर स्नेहशील होकर वासुदेव और बलदेव की तरह बड़े होने लगे । क्रमशः उन्होंने मदन निलय, तरुणियों को आकर्षित करने में मन्त्र रूप और सौन्दर्य का उत्सव यौवन प्राप्त किया।
(श्लोक ११-१५) सुमन्दिरपुर के राजा निहतशत्रु के मन्त्री एक दिन घनरथ की राजसभा में आए और घनरथ को नमस्कार कर बोले- 'देव, विभिन्न गुण युक्त आपका यश यूथी फल की गन्ध की तरह या चन्द्र की चन्द्रिका की तरह किसके हृदय को आनन्दित नहीं कर रहा है। दूर रहने पर भी आपके मित्र निहतशत्रु आपसे सम्बन्ध स्थापित कर आपके स्नेह के आकांक्षी हैं। राजा निहतशत्रु के त्रिलोक की साररूपा तीन कन्याएँ हैं। वे उनमें से दो को कुमार मेघरथ को एवं तीसरे को कुमार दृढ़रथ को देना चाहते हैं। आप परस्पर बान्धव बनिए।
(श्लोक १६.२१) घनरथ ने इस सम्बन्ध को स्वीकार करते हुए कहा-'हमारी मित्रता इस सम्बन्ध में दढ़ होगी। पार्वत्य नदी की तरह परस्पर मिलित होकर आर्यों के बन्धुत्व क्रमशः वद्धित होते हैं।' (श्लोक २२)
मन्त्री बोले-'महाराज, तब उत्तम नैमित्तिकों को बुलाकर शुभ कार्य का शुभ मुहूर्त स्थिर करिए । कामदेव-से रूपवान राजकुमारों को हमारे राज्य में भेजिए। विवाह के बहाने आपको सम्मानित करने का हमें अवसर दीजिए। (श्लोक २३-२४)
नैमित्तिकों के शुभ दिन निश्चित करने पर कुमारों का जाना स्वीकृत कर घनरथ ने मन्त्री को विदा दी। मन्त्री ने आनन्द-चित्त शीघ्र सुमन्दिरपुर लौटकर यह शुभ समाचार देकर निहतशत्रु को