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कन्या को जन्म दिया । मैंने उसी से बिवाह किया है । मेरे भी चारित्र और रूप सम्पन्न एक कन्या हुई । वही कन्या अभी आपके सम्मुख खड़ी है । यह मणिसागर पर्वत पर प्रज्ञप्तिका नामक विद्या की आराधना कर रही थी । ठीक उसी समय इस दुष्ट ने इसका अपहरण कर लिया । विद्या के प्रभाव से मेरी कन्या द्वारा प्रताड़ित होकर यह दुराचारी कहीं भी आश्रय न पाकर आपके आश्रय में आया है । प्रज्ञप्तिका विद्या की उपासना के लिए पूजा द्रव्य लेकर जब मैं वहाँ गया और उसे वहाँ नहीं पाया तब आभोगिनी विद्या के प्रयोग से समस्त तथ्य अवगत कर मैं यहाँ आया हूं | हे दुराचारियों को दण्ड देने वाले, आप इस दुराचारी का परित्याग करें । इस मुद्गर के आघात से मैं उसे श्रीफल की भाँति दो खण्ड कर यम लोक भेज दूँगा ।' ( श्लोक ९५ - १०३ ) अवधिज्ञान से सब कुछ जानकर राजा वज्रायुध उससे बोले'महात्मन् धैर्य धरिए । इसके पूर्वजन्म की कथा मैं आपको सुनाता हूं ध्यान से सुनिए ।' ( श्लोक १०४ )
'इस जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र के विंध्यपुर नगर में विध्यदत्त नामक एक राजा थे । उनके औरस से उनकी पत्नी सुलक्षणा के गर्भ से सर्व सुलक्षणयुक्त नलिनकेतु नामक पुत्र हुआ । उस नगर में बन्धुरूपी कमल के लिए सूर्यरूप श्रेष्ठि-कुल-तिलक धर्ममित्र नामक एक श्रेष्ठी निवास करते थे । उनकी पत्नी श्रीदत्ता के गर्भ से दत्त नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ । दत्त की पत्नी का नाम था प्रभंकरा | वह दिव्य रूप और लावण्यवती थी । ( श्लोक १०५-१०८) 'एक दिन बसन्त ऋतु में रति और मदन की तरह वह पत्नी सहित उद्यान में क्रीड़ा करने गया । राजा का पुत्र नलिनकेतु भी उसी समय उद्यान में आया । प्रभंकरा के रूप और लावण्य को देखकर वह बेसुध - सा होकर सोचने लगा इसका सौन्दर्यं जितना प्रशंसनीय है उतना ही प्रशंसनीय है वह जो उसके साथ क्रीड़ा करे । इस प्रकार मदन के वशीभूत होकर उसने प्रभंकरा का अपहरण कर लिया । तदुपरान्त नलिनकेतु उसके साथ यथेच्छ विहार करने लगा । उधर विरह वेदना में कातर बना दत्त प्रभंकरा को याद करते हुए उन्मादी की भाँति उस उद्यान में घूमता रहता । इसी भाँति घूमते हुए एक दिन उसने वहाँ सुमनस नामक एक मुनि को