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रखा वज्रायुद्ध । प्रस्फुटित माल्य द्वारा कुदृष्टि से रक्षित होता हुआ वह असाधारण बालक क्रमशः बड़ा होने लगा। समस्त कलाओं को अधिगत कर उसने देव, असुर एवं मानव हृदयों को भी जो भ्रमित कर दे ऐसा यौवन प्राप्त किया। भुजाओं में मङ्गल सूत्र धारण कर उसने लक्ष्मी-सी लक्ष्मी का पाणिग्रहण किया। (श्लोक ८-१२)
आकाश से गिरकर वर्षा जैसे धरती के गर्भ में प्रविष्ट होती है वैसे ही अनन्तवीर्य का जीव अच्युत कल्प से च्यव कर लक्ष्मीवती के गर्भ में प्रविष्ट हुआ। यथा समय रानी ने शुभ स्वप्नों द्वारा सूचित सर्व सुलक्षण युक्त और सूर्य-से तेजस्वी एक पूत्र को जन्म दिया। एक शुभ दिन जन्मोत्सव से भी श्रेष्ठ एक उत्सव कर पुत्र का नाम रखा सहस्रायुध । चन्द्र जैसे कलाओं से वद्धित होता है उसी प्रकार समस्त कलाओं को अधिगत कर वह क्रमशः यौवन को प्राप्त हआ। उसने कामदेव-सी सौन्दर्य सम्पन्न श्री से भी अधिक सुन्दरी कनकधी से विवाह किया। उनके सर्व सुलक्षण युक्त और वायु-से शक्तिशाली एक पुत्र उत्पन्न हुआ। (श्लोक १३-१८)
एक समय महाराजा क्षेमंकर अपने पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, मन्त्री, सामन्त और राजाओं सहित राजसभा में बैठे थे। उस समय ईशान कल्प के देव सभा में यह चर्चा चली कि मृत्यु लोक में वज्रायुध-सा दृढ़ सम्यक्त्व सम्पन्न व्यक्ति और कोई नहीं है। चित्रशूल नामक एक देव को उस पर विश्वास नहीं हुआ। वह बहुमूल्य रत्न जड़ित मुकुट और कुण्डल धारण कर मिथ्यात्वी के छद्मवेष में उनकी परीक्षा लेने के लिए उस सभा में अवतीर्ण हुआ। (श्लोक १९-२२)
नाना वाद-विवादों के मध्य सम्यक्त्व पर आक्रमण करता हुआ वह बोला, 'संसार में न पुण्य है, न पाप, न आत्मा है, न परलोक । मनुष्य इन पर विश्वास कर व्यर्थ ही कष्ट भोगता है।'
(श्लोक २३-२४) सम्यक्त्व विश्वासी वज्रायुध प्रत्युत्तर देते हुए बोल उठे, 'आप यह क्या कह रहे हैं ? यह तो प्रत्यक्ष के विरुद्ध है। स्व अवधि ज्ञान से पूर्व जन्म का स्मरण करिए। उस जन्म कृत धर्माराधना के . कारण आपने वर्तमान जीवन में ऋद्धि प्राप्त की है। आप पूर्व जन्म में मनुष्य थे, इस जन्म में देवता। यदि आत्मा ही नहीं होती तो यह सब कैसे घटता ? इस लोक में आपने मानव देह धारण की थी