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परलोक में देवता हैं। हे विचक्षण, इसी प्रकार इस लोक की तरह परलोक भी सत्य है।'
(श्लोक २५-२८) वज्रायुध द्वारा इस प्रकार सटीक उत्तर पाकर चित्रशूल बोला, 'हे महानुभाव, आप ठीक कह रहे हैं, बिल्कुल ठीक । आपने मेरे मिथ्यात्व को दूर कर भवभ्रमण से मेरा उद्धार किया है। आपने मुझ पर पिता और तीर्थंकर-सा उपकार किया है। मैं चिरकाल से मिथ्यात्वी था। द्वष के वशीभूत होकर आने पर भी आपके साक्षात्कार से मैं उपकृत हुआ हूं। आप मुझे सम्यक्त्व प्रदान करें कारण महान पुरुषों का सान्निध्य कभी वृथा नहीं होता।'
(श्लोक २९-३१) विवेकशील वज्रायुध ने उसे धर्म का स्वरूप समझा कर सम्यक्त्व में स्थित किया । कारण वे भावी तीर्थंकर के पुत्र थे। चित्रशूल फिर बोला, 'कुमार, आज से मैं आपका आज्ञावाही हूं। आप मुझसे कुछ प्रार्थना करें।' वज्रायुध बोले, 'मैं आपसे यही प्रार्थना करता हूं आप अविचल सम्यक्त्व में स्थित रहें।' देव बोले, 'यह तो मेरे हित में है। आप अपने लिए कुछ माँगे ताकि मैं आपके ऋण से मुक्त हो सकें।' वज्रायुध बोले, 'वही मेरी सेवा होगी अन्य कुछ नहीं।' तब चित्रशूल निष्कांक्षी वज्रायुध को कुछ दिव्य अलङ्कार देकर विदा हुआ।
(श्लोक ३२-३६) चित्रशूल ईशानेन्द्र की सभा में लौटकर बोला, आपने वज्रायुध की जो प्रशंसा की वह बिल्कुल ठीक थी, वह उसके योग्य है । वह भविष्य में तीर्थंकर होगा।
(श्लोक ३७-३८) देवताओं की-सी ऋद्धि का भोग करते हुए बज्रायुध सांसारिक भोग में जीवन व्यतीत करने लगे।
___ (श्लोक ३९) एक दिन बसन्त में गणिका सुदर्शना ने बज्रायुध को बसन्त ऋतु का पुष्प संभार देते हुए कहा, 'महाराज, तरुणों का नर्मसखा, मीनकेतु के समर सचिव बसन्त का आज आविर्भाव हुआ है। जिन नगर-वधुओं को यौवन प्राप्त हुआ है वे झूले में झूल रही हैं और उनकी सखियाँ उनके पति का नाम पूछ रही हैं। मुग्धाएँ भी पुष्प चयन कर पुष्पधनु की पूजा कर रही हैं और लज्जा परित्याग कर दूती का कार्य कर रही हैं । बसन्त की शक्ति ऐसी ही है । अनङ्ग को जगाने के लिए चारण की तरह कोयल कुहू कुहू और भ्रमर गुजार