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[२०९ अतिरिक्त और क्या कर सकता है ? माँ के दुःख से क्षुब्ध होकर महापद्म रात्रि के समय जबकि समस्त नगर सोया हुआ था हस्तिनापुर का परित्याग कर अन्यत्र चले गए। इधर-उधर जाते हुए उन्होंने एक महारण्य में प्रवेश किया। वहां उन्हें एक आश्रम दिखलाई पड़ा । वहाँ के अतिथि-वत्सल तपस्वियों द्वारा सत्कृत होकर महापद्म उसी आश्रम में घर की तरह रहने लगे।
(श्लोक ४९-५६) राजा काल ने चम्पानगरी पर आक्रमण किया। फलतः चम्पा के राजा जन्मेजय पराजित हो गए । नगरी की सुरक्षा भंग हो गई। दावानल में हरिणियाँ जिस प्रकार दिग्भ्रमित ज्ञानहीन होकर दौड़ती हैं उसी प्रकार अन्तःपुरिकाएँ भी जिसको जिधर जगह मिली, भाग छुटीं। चम्पा की रानी नागवती ने अपनी कन्या मदनावली को लिए उस आश्रम में आश्रय ग्रहण किया। पद्म और मदनावली ने काम के वशीभूत होकर एक दूसरे को देखा और एक दूसरे के प्रति आसक्त हो गए। मदनावली को प्रेमासक्त देखकर उसकी माँ बोली-'यह क्या ? इतनी चंचल क्यों हो गई हो? तुम चक्रवती राजा की पत्नी बनोगी। भविष्यवक्ता का वह कथन स्मरण करो। अतः जिस किसी के प्रेम में पड़ना तुम्हारे लिए उचित नहीं है। संयम रखो। यथासमय चक्रवर्ती के साथ तुम्हारा विवाह होगा।'
(श्लोक ५७-६३) ___ राज कन्या का अमङ्गल हो सकता है सोचकर कुलपति ने महापद्म को बुलवाया और बोले-'पुत्र, तुम जहाँ से आए हो वहीं लौट जाओ । तुम्हारा कल्याण हो ।'
(श्लोक ६४) यह सुनकर महापद्म सोचने लगे एक समय में दो चक्रवर्ती नहीं होते । जब मैं ही भविष्य में चक्रवर्ती बन गा तब तो यह मेरी ही पत्नी है-ऐसा सोचकर महापद्म उस आश्रम का परित्याग कर निकल गए और घूमते हए सिन्धुसदन नगर में पहुंचे। उस समय उस नगर में वसन्तोत्सव हो रहा था। इसलिए उस नगर की स्त्रियाँ बाहरी उद्यान में एकत्र होकर नाना प्रकार की क्रीड़ा कर कामदेव की उपासना कर रही थीं। उनका कोलाहल सुनकर राजा महासेन के हाथी ने कदली वृक्ष की तरह आलान स्तम्भ को उखाड़ डाला। पीठ पर बैठे दोनों आरोही को बिछावन की धूल