________________
[१८३ द्वितीय दूत ने कहा-चम्पाधिपति चन्द्रच्छाया जिनकी भुजाएँ जुआ की तरह है, स्कन्ध प्रशस्त है, नेत्र प्रिय हैं, रुचि परिमार्जित है, जो बुद्धिमान और स्व-वाक्य पालन में दृढ़ है, युद्ध में पराक्रमी है, समस्त प्रकार के ज्ञान-विज्ञान के वेत्ता हैं अस्त्र प्रयोग में कुशल हैं और चन्द्र के समान प्रभा - सम्पन्न हैं, वे मल्ली का हाथ ग्रहण करने को उत्सुक हैं । आप उन्हें मल्ली दान करें।'
(श्लोक १५६-१५७) तृतीय दूत बोला-'श्रावस्तीपति रुक्मी जो साधारण लोगों के लिए कल्पतरु हैं, योद्धाओं में श्रेष्ठ योद्धा हैं, शरणार्थिओं के लिए शरण्य है और साहसियों में प्रथम है, विजयरूपी लक्ष्मी के लिए जो क्रीड़ा निकेतन हैं वे आपकी कन्या के साथ विवाह करना चाहते हैं । हे राजन्, योग्य के साथ योग्य का मिलन करवाइए । योग्य क्या है यह आप जानते ही हैं।'
(श्लोक १५८-१५९) चतुर्थ दूत बोला, काशीराज शंख ने अपनी अलौकिक शक्ति से कुबेर को भी अतिक्रम किया है । जो वाक्पटु हैं, रूप में कन्दर्प हैं, शत्रुओं के गर्व को जो खर्च करने वाले हैं, जो कि चारित्र पथ के पथिक हैं जिनकी आशा पाकशासन की तरह पालित होती हैं, जिनका यश शंख की तरह धवल है वे आपकी कन्या का पाणिग्रहण करना चाहते हैं । आप सम्मति दीजिए।'
(श्लोक १६२-१६४) पंचम दूत बोला-'हस्तिनापुरपति अदीनशत्रु जो कि शक्ति में हस्तमल्ल की तरह लाघव हस्त हैं, दीर्घबाहु हैं, बहुयुद्ध विजयी हैं, विस्तृत वक्ष, बुद्धिमान, तरुण, यशरूपी लतिका के नव पल्लव रूप, गुणरूपी रत्नों में रोहण तुल्य हैं, जो दरिद्र और अनाथों के नाथ हैं, वे आपकी कन्या के पाणिग्रहण के लिए प्रार्थी हैं । हे विदेहपति आप उन्हें अपनी कन्या दान करें।'
(श्लोक १६५-१६७) __ छठा दूत बोला-'हस्ती जैसे पर्वत को कम्पित नहीं कर सकता उसी भाँति काम्पिल्यपति जितशत्रु को शत्रु कम्पित नहीं कर सकता । समुद्र जैसे बहुत सी नदियों द्वारा अलंकृत होता है उसी भाँति बहु सैन्यवाहिनियों से वे अलंकृत हैं। शुनासिरों की भाँति वे बहुत से सेनापतियों से परिवृत हैं, जिनके समस्त शत्रु पराभूत हैं ऐसे वे मेरे माध्यम से आपकी कन्या के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।