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उतनी सुन्दर रमणियाँ और कहीं है ?
( श्लोक १३४ - १३८) चोक्ष हँसकर बोली, 'राजन्, आप तो उस कूपमंकडु की भाँति हैं इसीलिए ऐसा सोच रहे हैं कि आपकी अन्तःपुरिकाएँ ही सुन्दर हैं । मिथिला के राजा कुम्भ की कन्या मल्ली के सम्मुख ये कुछ नहीं हैं । वह हरिणनयनी रमणीकुल का रत्न है । उनकी अंगुलियों में भी जो सौन्दर्य है वैसा सौन्दर्य न देवकन्याओं में है, न नागकन्याओं में। वह आकृति में जैसी अनन्य है वैसी ही रूप और लावण्य में । और अधिक क्या कहूं ? ( श्लोक १३९ - १४२) जितशत्रु ने मल्ली की ( श्लोक १४३ )
अपने पूर्वजन्म के प्र ेम के कारण पाणि प्रार्थना कर राजा कुम्भ के पास दूत भेजा ।
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अवधि ज्ञान से मल्ली ने अपने पूर्वजन्म के छह मित्रों इन छह राजाओं के मनोभाव को अवगत कर अपनी एक स्वर्ण प्रतिकृति बनवाकर अशोक वन के प्रासाद के एक कक्ष में रत्नवेदी पर स्थापित करवा दी । उस प्रतिकृति के ओष्ठ थे मानिक के, केश इन्द्रनील मणि के, नेत्र इन्द्रनील मणि और स्फटिक के हाथ और पैर प्रवाल के, पेट से तालु तक जुड़ी एक नली थी । तालु के छिद्र स्वर्ण कमल द्वारा आवृत और अंग प्रत्यंग थे सर्वाङ्ग सुन्दर । जहाँ मूर्ति रखी हुयी थी उसके सामने की दीवार पर मल्ली ने छह दरवाजे और छह जालीदार खिड़कियाँ बनवाई । उन दरवाजे के पीछे छह पृथक-पृथक थी उसके पीछे भी
कक्ष बनवाए गए । और वह मूर्ति जहाँ रखी गयी एक दरवाजा बनवाया गया । प्रतिदिन खाने के पूर्व मल्ली समस्त प्रकार के खाद्य का एक कौर बनाकर स्वर्ण कमल से आवृत तालू छिद्र में डाल देती । ( श्लोक १४४ - १५० )
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छः राजाओं के दूत प्राय: एक साथ मिथिला में उपस्थित हुए । पहले दूत ने निवेदन किया- 'साकेतपति प्रतिबुद्ध जिनके चरण कमल बहुत से सामन्त और नृपतियों के मस्तक से रगड़ जाते हैं, जो दीर्घबाहु, साहसी और रूप में मीनकेतु की तरह हैं, जो व्यवहार में चन्द्र की तरह, प्रभा में सूर्य की तरह, ज्ञान में वृहस्पति के तरह हैं आपकी अभिनन्द्य सुन्दरी कन्या मल्ली के साथ विवाह करना चाहते हैं । कन्या तो किसी न किसी को दान करनी ही पड़ती है अतः साकेतपति को अपनी कन्या देकर उन्हें अपना आत्मीय बना लें ? ( श्लोक १५१ - १५५)