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की हू-ब-हू आकृति चित्रित कर सकता था। एक बार यवनिका के अन्तराल से मल्ली के पैरों को देखकर उसने मल्ल की चित्रशाला में मल्ली की हू-ब-हू प्रतिकृति अंकित कर दी । सोचा अपूर्व सुन्दरी का चित्र देखकर राजकुमार प्रसन्न होंगे। (श्लोक १०७-११०)
चित्रशाला निर्मित हो जाने पर मल्ल उसमें क्रीड़ा करने के लिए गया । वहाँ मल्ली के चित्र को सचमुच की मल्ली समझकर लज्जित हो गया और शीघ्र ही उस स्थान का परित्याग कर बाहर निकल आया । कंचकी के पूछने पर मल्ल ने कहा, 'वहाँ मेरी बहिन मल्ली खड़ी है, मैं वहाँ कैसे प्रमोद करूँ ?' तब कंचुकी भीतर गई और सब कुछ देखकर बाहर आकर बोली, 'कुमार वह आपकी बहन स्वयं मल्ली नहीं, उसका चित्र है । अतः आप जाइए।' य: सुनकर युवराज ने क्रुद्ध होकर चित्रकार को शीघ्र बुलाया और उसके दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगूठा काटकर देश से निर्वासित कर दिया।
(श्लोक १११-१९३) वही चित्रकार हस्तिनापुर गया और राजा अदीनशत्रु से इस प्रकार मल्ली के रूप का वर्णन किया-
(श्लोक ११४) 'आकाश मे चन्द्रकला की भाँति मल्ली पृथ्वी की एक मात्र रूपसी है। ऐसी रूपसी न कभी जन्मी न कभी जन्मेगी। मल्ली को देखने के पश्चात अन्य किसी रमणी को देखना इन्द्रनील मणि को देखने के पश्चात् काँच का टुकड़ा देखने जैसा है । रूप, लावण्य, गति, हावभाव में जिस प्रकार नदियों में जाह्नवी प्रथमा है उसी प्रकार रमणियों में मल्ली प्रथमा है। ऐसा कहकर उस कुशल चित्रकार ने राजा को मल्ली का चित्र दिखाया । (श्लोक ११५-११८)
उस चित्र को देखकर राजा विस्मित हो गए और पूर्व जन्म के स्नेह के कारण मल्ली के पाणिग्रहण की प्रार्थना लेकर राजा कुम्भ के पास दूत भेजा।
(श्लोक ११९) ___अभिचन्द्र के जीव ने वैजयन्त विमान से च्युत होकर काम्पिल्य के राजा जितशत्र के रूप में जन्म ग्रहण किया । धर्म के द्वारा आकृष्ट होकर मानों स्वर्ग की अप्सराएँ ही धरती पर आ गई है ऐसी धारिणी प्रमुख उनके एक हजार पत्नियाँ थी। (श्लोक १२०-१२१)
एक बार मिथिला में चोक्षा नामक एक परिव्राजिका आयी और राजन्य एवं अभिजातों के घर-घर जाकर कहने लगी-'दान .