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वर्णन करूं तो भी लगेगा कुछ कहा ही नहीं। वहाँ तो मेरा वाक्य ही प्रमाण है । अतः उस रमणी रत्न को देखने के पश्चात मैंने अन्य रमणी के रूप का वर्णन न करने की शपथ ग्रहण कर ली है। उसकी तुलना में अन्य रमणियाँ परित्यक्त फूल-सी हैं । कल्पतरु के मुकुल के सम्मुख आम्र मुकुल का क्या मूल्य ?'
(श्लोक ८७-९५) ऐसा सुनकर पूर्व जन्म के स्नेह के कारण राजा रूक्मी ने मल्ली के पाणिग्रहण की प्रार्थना कर राजा कुम्भ के पास दूत भेजा।
(श्लोक ९६) वसु के जीव ने वैजयन्त विमान से च्युत होकर वाराणसी के राजा शंख के रूप में जन्म ग्रहण किया। एक बार अरहन्नक प्रदत्त मल्ली के वे कुण्डल टूट गए। राजा कुम्भ ने स्वर्णकार को उसे ठीक करने को दिया। उसने निवेदन किया, 'महाराज, इस अलौकिक कुण्डल को मैं ठीक नहीं कर सकता।' इस पर क्रुद्ध होकर राजा कुम्भ ने उसे नगर से निष्कासित कर दिया। वह स्वर्णकार वाराणसी गया और राजा शंख से आश्रय मांगा। उसने अक्षत कुण्डल से लेकर मल्ली के रूप का भी वर्णन राजा के सम्मुख किया। कहने लगा-'मल्ली के मुख से चाँद की तुलना की जा सकती है । ओष्ठ से बिम्बफल की, कंठ से शंख की, बाहुओं से पद्मनाल की, कटि से बज्र के मध्य भाग की, जंघा से कदली वक्ष की, नाभि से नदी के आत की, नितम्ब से दर्पण की, पैरों से हरिणी के पैरों की, करतल और पदतल से कमल की तुलना की जा सकती है। रूप वर्णन में जो उपमाएँ दी जाती हैं वे सभी उसके लिए प्रयोज्य हैं।'
(श्लोक' ९७-१०४) उसके रूप की कथा सुनकर पूर्वजन्म के स्नेह के कारण राजा शंख ने मल्ली के पाणि-ग्रहण की प्रार्थना लेकर राजा कुम्भ के पास दूत भेजा।
(श्लोक १०५) __ वैश्रवण के जीव ने वैजयन्त विमान से च्युत होकर हस्तिनापुर के राजा अदीनशत्रु के रूप में जन्म ग्रहण किया।
(श्लोक १०६) मल्ली के छोटे भाई मल्ल ने प्रमोदगृह के रूप में एक चित्रशाला निर्मित करवाई थी। वहाँ के चित्रकारों में एक कुशल चित्रकार था जो देह के एक अवयव मात्र को देखकर उस व्यक्ति