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क्षमा माँगी। उन्होंने अरहन्नक को कानों के दो जोड़ी कुण्डल दिए और वायु को शान्त कर चले गए।
(श्लोक ७५-७६) ___ कालान्तर में समुद्र यात्रा से लौटते समय अरहन्नक ने दो जोड़ी कुण्डलों में से एक जोड़ी कुण्डल राजा को भेंट किये । राजा ने वे कुण्डल तत्क्षण मल्ली को दिए और अरहन्नक को सम्मानित कर विदा दी। वहाँ से वाणिज्य कर अरहन्नक चम्पा आए और दूसरी जोड़ी कुण्डल वहाँ के राजा चन्द्रच्छाया को दिये। राजा ने उनसे पूछा, 'वणिक, ये कुण्डल आप को कहाँ से मिले ? तब अरहन्नक ने बिना कुछ छिपाए कुण्डल प्राप्ति की सारी कथा कह सुनायी । अन्य जोड़ी राजा कुम्भ को देने के प्रसंग में उन्होंने मल्ली के सौन्दर्य को बात बतायी । बोले, 'मल्ली यदि मुह उठाकर देखे तो चन्द्र परास्त होकर छिप जाए, उसकी देह से जो दीप्ति निकलती है वह मरकत मणि को भी लज्जित करती है। उसके देह लावण्य की जो सरिता है उसके सामने जाह्नवी का जल भी मैला लगता है। और आकृति ? ऐसी आकृति तो स्वर्ग की देवियों की भी नहीं होतीं । यदि उसे एक बार भी नहीं देखा तो उस पुरुष के तो नेत्र ही व्यर्थ है । जिसने विकसित कमल वन की नहीं देखा ऐसा हंस किस काम का ?'
(श्लोक७७-८५) पूर्व जन्म की प्रीति के कारण चन्द्रच्छाया उसके प्रति आकृष्ट हो गए और मल्ली की पाणि-प्रार्थना करने दूत को कुम्भ के पास भेजा।
(श्लोक ८६) _पूरण के जीव ने वैजयन्त विमान से च्युत होकर श्रावस्ती के राजा रुक्मी के रूप में जन्म ग्रहण किया । पत्नी धारिणी के गर्भ से उसके सुबाहु नामक एक कन्या हुई । रूप में वह नागकन्या की तरह सुन्दर थी । एक बार सुबाहु का चातुर्मासिक स्नानोत्सव उसकी सहचरियों ने मनाया । विशेष स्नान के पश्चात दिव्य रत्नाभरण धारण कर वह पिता को प्रणाम करने गयी । राजा ने उसे गोद में बैठाकर कंचुकी से पूछा- 'क्या तुमने ऐसा स्नानोत्सव कहीं अनुष्ठित होते देखा है ?' कंचुकी ने प्रत्युत्तर दिया, 'आपके आदेश से जब मैं मिथिला गया था, वहाँ राजा कुम्भ की कन्या मल्ली के जन्मोत्सव पर जिस उत्सव को अनुष्ठित होते देखा वह बहुत सुन्दर था । उस अनन्या का रूप ऐसा था, उसका यदि मैं पूर्ण