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१६४] थे । उनके सम्मुख नृत्य-गीत नाटकादि कर उन्हें विचलित करना चाहा; किन्तु दैव अस्त्र जिस प्रकार आत्मियों पर असफल हो जाता है उसी प्रकार वे सब असफल हो गए। तब वे सिद्धपुत्र का रूप धारण कर उनके सम्मुख आए और बोले-'महाभाग, आपकी उमर लम्बी है और आप अभी तरुण हैं, अतः अभी आप सांसारिक सुख भोग करें। तरुण अवस्था में योग ग्रहण की क्या आवश्यकता है ? उत्साही होने पर भी ऐसा कौन है जो सन्ध्या का कार्य सुबह ही प्रारम्भ करे ? जब यौवन बीत जाए और शरीर निर्बल हो जाए तब द्वितीय वार्द्धक्य की तरह तप आराधना करिएगा।'
(श्लोक १५-२३) पद्मरथ बोले-'यदि उमर लम्बी है तो धर्म साधना अधिक होगी। पद्मनाल जल के अनुरूप ही बढ़ती है। इन्द्रियां जब चंचल है उस समय की गई तपस्या ही तपस्या है। उसे ही वीर कहा जाता है जो युद्ध में तीक्ष्ण अस्त्रों के सम्मुखीन होकर अपना वीरत्व प्रदर्शित करता है।
(श्लोक २४-२५) देव उसकी दृढ़ता देखकर 'बहत ठीक, बहत ठीक' कहकर जमदग्नि की परीक्षा लेने गए। उस समय जमदग्नि एक वटवृक्ष के नीचे ध्यानमग्न थे उनकी वृहद् जटाएँ वृक्ष की तरह ही विस्तृत होकर भूमि स्पर्श कर रही थीं। चींटें उनके पैरों के पास से चल रहे थे । देव उनकी जङ्गल-सी दाढ़ी में एक छोटा घोंसला बनाकर उसमें पक्षी रूप धारण कर बैठ गए। नर पक्षी बोला, 'प्रिये, मैं हिमालय जा रहा हं।' मादा पक्षी तब शंकित होकर बोली, 'देखो, वहां अन्य के प्रेम में पड़कर तुम यदि नहीं लौटे तो ?' नर पक्षी बोला, 'प्रिये यदि मैं नहीं लौटू तो मुझे गोहत्या का पाप लगे।' मादा पक्षी बोली, 'ॐ हूं, इस सामान्य शपथ से कुछ नहीं होगा। तुम यदि बोलो कि तुम्हें इस तपस्वी का पाप लगेगा तब मैं जाने दूंगी। तुम्हारी यात्रा शुभ हो।'
(श्लोक २६-३१) उनकी बात सुनकर जमदग्नि ऋद्ध हो उठे-उन्होंने दोनों पक्षियों को मुट्ठी में पकड़ कर कहा, 'सूर्य के मध्य अन्धकार-सा मेरे जैसे कठोर तपस्वी में ऐसा क्या पाप देखा कि मुझे गोहत्या से भी बढ़कर पापी मान रहे हो ?'
(श्लोक ३२-३३) तब नर पक्षी बोला, 'ऋषिवर, आप क्रुद्ध न हों । आपकी