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अपहरण करने वाले की हत्या करने में समर्थ बनें । उपवास तो किया; किन्तु इस निदान की आलोचना किए बिना ही मृत्यु प्राप्त कर माहेन्द्र देवलोक में शक्तिशाली देव रूप में जन्म ग्रहण किया ।
( श्लोक ४-७ ) वैताढ्य पर्वत के अरिञ्जय नामक नगर में मेघनाद नामक एक राजा राज्य करते थे । चक्रवर्ती सुभूम ने उन्हें वैताढ्य पर्वत की उभय श्रेणियों पर आधिपत्य प्रदान किया । उनकी कन्या के साथ चक्रवर्ती सुभूम का विवाह हुआ । सुकेतु के जीव ने भव भ्रमण करते-करते उसी नगरी में मेघनाद के परिवार में प्रतिवासुदेव बलि के रूप में जन्म ग्रहण किया । कृष्णवर्ण और पांच हजार वर्षों का आयुष्य लेकर छब्बीस धनुष दीर्घ बलि ने त्रिखण्ड भरत का आधिपत्य प्राप्त किया । ( श्लोक ८-११) उसी जम्बूद्वीप के दक्षिण भरतार्द्ध में पृथ्वी के अलङ्कार स्वरूप चक्रपुर नामक एक नगर था । उस नगर के राजा का नाम था महाशिर । द्वितीय लोकपाल की भांति उन्होंने ख्यातिमान राजाओं का मस्तक झुकाया था । इस राजन्य श्रेष्ठ राजा का चारित्र अनिन्द्य था । श्री के साथ शक्ति के योग की तरह उनमें बुद्धि के साथ विवेक संयुक्त था । स्वयम्भूरमण समुद्र के विभिन्न जीवों की तरह ऐसी कोई कला नहीं थी जो उन्हें अधिगत नहीं थी । उनके राज्य में तस्करों द्वारा अपहरण नहीं होता । वे तो केवल महामना लोगों के मन का अपहरण करते थे किसी को आनन्दित कर, किसी को भीत कर वे सज्जन और दुर्जन दोनों के ही मन में अवस्थित थे ।
( श्लोक १२-१७)
उनकी रानी का नाम था वैजयन्ती को भी पराजित करती थी । उनकी दूसरी लक्ष्मीवती थी ।
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वह रूप में अप्सरा रानी लक्ष्मी स्वरूपा
( श्लोक १८ )
राजा सुदर्शन का जीव सहस्रार विमान से च्यवकर अग्रमहिषी वैजयन्ती के गर्भ में अवतरित हुआ । बलदेव के जन्म सूचक चार महास्वप्नों को देखकर वे आनन्दित हुईं और श्रेष्ठ भ्रूण धारण किया । समय पूर्ण होने पर उन्होंने पूर्णिमा के चन्द्र की भांति १ लंकहीन पुत्र को जन्म दिया । २९ धनुष
नाम रखा गया आनन्द |
दीर्घ उस जातक का
( श्लोक १९ - २१ )