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सुनाते हुए समय काटें ।' साथियों में एक बोला- 'तब हम लोगों को कोई मजेदार कहानी सुनाओ ।' वामन बोला- 'कथा सुनाऊँ या वृत्तान्त ?' तब वह बोला- 'कथा और वृत्तान्त में क्या भेद है ? ' वामन बोला- वृत्तान्त होता है स्व अनुभव सम्बन्धी कथा और कथा होती है अतीत की लोकप्रचलित कथा ।' तब वह बोला, तब वृत्तान्त ही सुनाओ ।' वामन ने कहा, 'तब सुनो।'
( श्लोक ३२२ - ३२५) 'इस भरत क्षेत्र में ताम्रलिप्त नामक एक नगर है । वहां ऋषभदत्त नामक एक गुणवान वणिक रहते हैं । एक बार वे कार्य - वश पद्मिनीखण्ड नगर में आए। वहां उन्होंने सागरदत्त की कन्या प्रियदर्शना को देखा और उसके साथ अपने पुत्र वीरभद्र का विवाह स्थिर किया । वीरभद्र प्रियदर्शना का पाणिग्र ण कर उसके साथ सांसारिक सुख भोगने लगा । एक दिन रात को सोई हुई समझकर उसने प्रियदर्शना को जगाया । इससे क्रुद्ध होकर वह बोली- 'मुझे तंग मत करो, मेरा शिर दुख रहा है।' वीरभद्र बोला - ' इसमें किसका दोष है ?' प्रियदर्शना ने प्रत्युत्तर दिया- 'तुम्हारा ।' वीरभद्र ने कहा - 'मेरा दोष कैसे ?' वह बोली- 'इतनी रात को जो तुम इतना बकबक कर रहे हो इसलिए ।' तब वीरभद्र बोलाअच्छा, अब मैं तुम्हें अधिक तंग नहीं करूँगा ।' ऐसा कहकर उसने प्यार किया । उसके बाद जब वह सचमुच ही सो गई, वीरभद्र उसे छोड़कर अन्यत्र चला गया । (श्लोक ३२५-३३१) ' यह कहकर वामन शीघ्रता से उठा । बोला- 'अरे, राजसभा में जाने का समय हो गया है ।' उसके उठने पर प्रियदर्शना ने उससे पूछा - 'तब बताओ वीरभद्र अभी कहां है ? तुम तो निश्चय ही जानते होगे ।' वामन बोला- 'मेरे कुल में कलंक लग जाएगा इसलिए मैं दूसरे की स्त्री से बात नहीं करता ।' प्रियदर्शना बोली'तुम्हारा व्यवहार उच्चकुल के जैसा ही है; किन्तु कुलीन व्यक्ति का प्रथम गुण होता है नम्र भाव से उत्तर देना ।' 'मैं कल उत्तर दूँगा' कहकर वह तुरन्त चला गया । राजा जो घटित हुआ राजा को कह सुनाया ।
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लोगों ने भी जो (श्लोक ३३२-३३६)
दूसरे दिन सुबह वामन पूर्व की भांति ही साध्वी सुव्रता के उपाश्रय में गया और सुनने को उत्सुक लोगों को आगे सुनाने
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