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१५४] ईशानचन्द्र के कानों में पहुंची। राजा ईशानचन्द्र उसकी कला पर मुग्ध हो गए। जब कि एक कला ही मनुष्य को मुग्ध कर देती है तो अनेक कलाओं का तो कहना ही क्या। (श्लोक ३०५-३०७)
इधर अनङ्गसुन्दरी और प्रियदर्शना ने रत्नप्रभा को देखकर पूछा-'तुम्हारे पति कौन हैं और वे देखने में कैसे हैं ?' रत्नप्रभा बोली-'मेरे पति सिंहल द्वीप निवासी गौरवर्णीय समस्त कलाओं के निधान और रूप में कामदेव जैसे हैं। उनका नाम बुद्धदास है।' प्रियदर्शना बोली-सिंहल निवास और नाम बुद्धदास के अतिरिक्त मेरे पति भी ऐसे हैं।' अनङ्गसुन्दरी ने कहा-'गौरवर्ण, निवास सिंहल और नाम बुद्धदास के अतिरिक्त मेरे पति भी ऐसे ही हैं।' पति का कोई संवाद न पाकर वे तीनों तीन बहनों की तरह उसी उपाश्रय में तप और स्वाध्याय में समय व्यतीत करने लगीं और छद्मवेशी वामन प्रतिदिन अपनी तीनों पत्नियों को वहां आकर देख जाता । उनके शील व स्वभाव को देखकर वह आनन्दित हुआ।।
(श्लोक ३०८-३१३) ___ 'एक दिन राजा ईशानचन्द्र के कानों में यह संवाद पहंचा कि साध्वी सुव्रता के उपाश्रय में तीन विरहिणियां निवास कर रही हैं जो कि सुन्दर, सुशील और तीन रत्न की तरह पृथ्वी को पवित्र कर रही हैं। सच्चरित्रा और सत्कुलजाता होने के कारण वे किसी पुरुष से बात नहीं करती हैं । राजसभा में यह सुनकर छद्मवेशी वह वामन बोला, 'मैं उनको एक एक कर तीनों को ही बात करवा सकता हं ।' राजा ने कौतूहलवश तब उसे बात कराने को कहा । वह मन्त्री, राजकर्मचारी और कुछ नागरिकों को लेकर साध्वी सुत्रता के उपाश्रय में गया। उपाश्रय में प्रवेश करने के पूर्व ही अपने साथियों से कहा-'आप लोग वहां मुझे कहानी सुनाने को कहिएगा।' तदुपरांत वह उनके साथ उपाश्रय में प्रविष्ट हुआ और साध्वी सुव्रता एवं अन्यान्य साध्वियों को वन्दना कर वहां से कुछ दूर जाकर प्रवेश द्वार के पास बैठ गया । अद्भुत वामन की बात सुनकर अन्यान्य साध्वियों सहित उसकी तीनों पत्नियां भी कौतूहलवश उसे देखने वहां आईं।
___(श्लोक ३१४-३२१) 'वामन ने अपने साथियों से कहा-'जब तक राजा के वहां जाने का समय नहीं होता है तब तक हम यहां बैठकर कथा-कहानी