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कह रही हो तो बताओ ऐसा कौन है जो मेरी कला, यौवन और सौन्दर्य को तृप्त कर सकता है।'
(श्लोक २०५-२०८) ___'अनङ्गसुन्दरी के ऐसा कहने पर वीरभद्र ने स्वयं का परिचय दिया । अनङ्गसुन्दरी तब बोली-'मैं तुम्हारी अनुगत हूं, तुम्हीं मेरे स्वामी हो।' वीरभद्र ने कहा-'तब ठीक है। इसे लेकर कोई बातचीत मत करना । मैं भी आज से तुम्हारे यहां नहीं आऊँगा। तुम अपने पिता से कहो-आप श्रेष्ठी शत को बुलाकर कहें-मैं वीरभद्र को अनङ्गसुन्दरी देना चाहता हूं।' अनङ्गसुन्दरी के सम्मत होने पर वीरभद्र स्व-आवास को लौट गया। (श्लोक २०९-२१२)
'अनङ्गसुन्दरी मां से जाकर बोली-'मां, इतने दिनों तक योग्य पति नहीं ढूंढ पाने के कारण विवाह करने से इन्कार कर तीर से बींधने की तरह मैंने आपको कष्ट दिया। अब मैंने शङ्ख पुत्र वीरभद्र को जो कि रूप, कला एवं तारुण्य आदि से समन्वित है उपयुक्त वर खोज लिया है । उसके साथ आज ही मेरा विवाह कर दें । तुम पिताजी से जाकर कहो वे शङ्ख को बुलवाएँ और कहें वे मुझे वीरभद्र को देना चाहते हैं।' यह सुनकर आनन्दमना रानी तत्क्षण जाकर राजा से बोली-'सौभाग्यवश अपनी लड़की के लिए आपको आज वर मिल गया है, इसके लिए अजस्र धन्यवाद ! अनङ्गसुन्दरी ने स्वयं कहा है कि श्रेष्ठी शङ्ख का पुत्र उसके लिए योग्य वर है।' राजा ने कहा-'यह संवाद लेकर तो तुम मेरे सम्मुख कामधेनु या चिंतामणि रत्न की तरह उपस्थित हुई हो । इतने दिनों तक प्रतीक्षा कर उसने जिस वर को चुना है उससे उसकी बुद्धिमत्ता और धैर्य ही प्रकाशित हुआ है।
(श्लोक २१२-२१९) 'राजा के द्वारा आमन्त्रित होकर श्रेष्ठी शङ्ख कई वणिक पूत्रों सहित राजा के यहां गए और उन्हें प्रणाम किया। राजा ने श्रेष्ठी शंख से कहा-'आपके यहां ताम्रलिप्त से कोई युवक आया है। सुना है कि वह समस्त कलाओं में दक्ष है, असाधारण रूपवान है, लावण्ययुक्त और अनेक गुणों का आकर है।' शंख बोले'महाराज, उसके गुणों को तो सर्वसाधारण जानते हैं। राजा ने कहा-'वह आपकी आज्ञा का पालन करता है कि नहीं ?' श्रेष्ठी ने कहा-'आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ? उसके गुणों के कारण सब उसी की बात मानते हैं।' राजा ने कहा-'मैं अनङ्गसुन्दरी को उसे देना