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में तुम्ही बुद्धिमान हो; किन्तु एक बात तुम्हें कहूंगा- इससे कहीं तुम विपदा में न पड़ जाओ।' वीरभद्र ने कहा-'पिताजी, इसके लिए आप चिन्तित न हों । आप शीघ्र ही अपने इस पुत्र की योग्यता
और चरित्र का परिचय प्राप्त करेंगे- 'यह तो तुम्ही जानो' कहकर श्रेष्ठी चुप हो गए।
(श्लोक १८७-१९३) ___ 'राजा रत्नाकर के सभासदों में इस प्रकार आलोचना होने लगी-'श्रेष्ठी शक के घर ताम्रलिप्ति से एक नवयुवक आया है। नानाविध कलाओं का प्रदर्शन कर वह लोगों का मन हर लेता है। विदेशागत होने से उसके वंश का परिचय तो नहीं मालम; किन्त आकृति से वह उच्चकुलजात लगता है।' राजा ने मन ही मन सोचा - यह नवयुवक रूप में कामदेव-सा और सुशील सुदर्शन कलाविद् एवं बुद्धिमान भी है। यदि वह मेरी कन्या से विवाह करने को राजो हो जाए तब तो यही कहा जाएगा योग्यों को मिलाने में विधाता कंजूसी नहीं करता। (श्लोक १९४-१९८)
'उधर एक दिन सुयोग पाकर वीरभद्र ने अनंगसुन्दरी से कहा-'तुम भोग सुख से इतनी विरक्त क्यों?' अनंगसुन्दरी बोलीभोग सुख कौन नहीं चाहता; किन्तु योग्य पति को ढूँढकर पाना सहज नहीं है । कांच के साथ अंगूठी में जड़ जाने से अधिक अच्छा हीरे के लिए अकेला रहना ही है। जिस प्रकार सामुद्रिक कुम्भी आदि से पूर्ण नदी से जलहीन नदी ही अच्छी होती है, तस्करपूर्ण गृह से शून्य गृह, विष वृक्ष पूर्ण उद्याने से वृक्ष हीन उद्यान, उसी प्रकार कुलहीन कलाहीन दुर्गुणी स्वामी से तो तरुण और सुन्दरी होने पर भी अविवाहित रहना ही अच्छा है। हे सखि, अब तक मैं अपने लिए उपयुक्त वर खोज नहीं पाई हूं। कलाहीन स्वामी को वरण कर मैं क्यों सबके लिए हास्यास्पद बन ?'
(श्लोक १९९-२०४) 'वीरभद्र बोला-'ऐसा मत कहो कि तुम्हारे योग्य या तुम से अधिक कलाविद् वर नहीं है। क्या पृथ्वी पर रत्नों का अभाव है ? आज ही तुम्हारे योग्य स्वामी मैं चुन दूंगी। नहीं तो फिर जैसी तुम्हारी रुचि-अन्य कोई तुम्हें सुखी नहीं कर पाएगा।' अनङ्गसुन्दरी बोली-'तुम मुझे आशा बँधा कर मेरे मुख से बात बाहर निकालना चाहती हो या झूठ बोल रही हो? यदि तुम सत्य