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रही हूं। तब से स्वप्न के अतिरिक्त उन्हें कहीं नहीं देखा । अब तो सौभाग्य ही उन्हें मेरे पास ला सकता है । अन्यथा मत समझना । तुम्हारे दुःख को लाघव करने के लिए ही मैंने तुम्हें यह बात कही है । अब दुःख की बात छोड़ो। यदि भाग्य सुप्रसन्न हुआ तो उसके साथ फिर मिलन हो सकता है।'
(श्लोक ५०९-५२२) ___ 'उसकी बात सुनकर कामपाल अवगुण्ठन हटाकर मदिरा से बोला-'प्रिये, वह नवयुवक मैं ही हूं जिसे तुमने यक्षोत्सव में देखा था। भाग्य की कृपा से हमलोगों की तरह वसन्तदेव और केशरा का मिलन हो गया है। अब बातों में समय नष्ट मत करो। भय त्याग कर भागने का पथ सोचो ताकि हम यहाँ से भाग सकें।'
___ (श्लोक ५२३-५२५) 'ऐसा कहकर वह उठ खड़ा हुआ और मदिरा द्वारा निर्देशित पिछले दरवाजे से उद्यान में गया और वहां से मदिरा को लेकर वसन्तदेव एवं केशरा से मिलकर इस नगर में आया। राजन्, पूर्व जन्म के स्नेह के कारण वे दोनों तुम्हें दिव्य पंच द्रव्य देते रहते हैं । उन्हें पहचानो। उनके साथ इन पंच द्रव्यों का उपभोग कर सकोगे। इतने दिनों तक तुम उन्हें पहचानते नहीं थे इसीलिए तुम उन का उपभोग नहीं कर सके ।' . (श्लोक ५२६-५२९)
भगवान शान्तिनाथ की यह बात सुनकर राजा और उनके मित्रों को पूर्व जन्म का ज्ञान हआ। राजा कुरुचन्द्र भगवान को प्रणाम कर अपने पूर्व जन्म के मित्रों को भाइयों की तरह अपने प्रासाद में ले गए । देव भी भगवान शान्तिनाथ को प्रणाम कर अपने-अपने निवास स्थान को लौट गए। भगवान लोक कल्याण के लिए अन्यत्र विहार कर गए।
(श्लोक ५३०-५३२) भगवान के संघ में ६२००० ब्रह्मचारी साधु, ६१६०० साध्वियां, ८०० पूर्वधारी, ३००० अवधि ज्ञानी, ४००० मनःपर्याय ज्ञानी, ४३०० केवलज्ञानी, ६००० वैक्रियलब्धिधारी, २४०० वादी २९०००० श्रावक और ३९३००० श्राविकाएँ थीं। केवल ज्ञान उत्पन्न होने के बाद भगवान एक वर्ष कम २५ हजार वर्ष तक प्रवजन करते रहे। अपना निर्वाण समय निकट जानकर वे सम्मेतशिखर पर्वत पर गए और ९०० मुनियों सहित अनशन ग्रहण कर लिया । एक महीने वाद ज्येष्ठ कृष्णा त्रयोदशी को चन्द्र जब भरणी