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[१२५ नक्षत्र में अवस्थित था तब उन ९०० मुनियों सहित निर्वाण को प्राप्त हो गए। भगवान की पूर्ण आयु एक लाख हजार वर्ष की थी। उसमें उन्होंने २५-२५ हजार वर्ष कुमारावस्था, माण्डलिक राजा, चक्रवर्ती, और व्रत पर्यायों में व्यतीत किए। तीर्थङ्कर रूप में धर्मनाथ स्वामी के निर्वाण के बाद एक पल्योपम के तीन चतुर्थांश कम तीन सागरोपम के पश्चात् भगवान शान्तिनाथ का जन्म हुआ था । उनका निर्वाण महोत्सव भी देव और इन्द्रादि द्वारा अनुष्ठित हुआ । यथा समय गणधर चक्रायुध को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई । दीर्घकाल तक पृथ्वी पर विचरण करते हए भव्य जीवों को प्रज्ञा का आलोक देते हुए वे भी बहुत से मुनियों सहित कोटि-शिला तीर्थ पर निर्वाण को प्राप्त हुए।
(श्लोक ५३३-५४३) प्रख्यात प्रतापी और शक्ति के अक्षय अधिकारी भगवान शान्तिनाथ की जय हो। जिन्होंने छः खण्ड पृथ्वी को सहज ही जीत लिया था। बाद में उसी राज्य सम्पदा को तृण की भांति त्यागकर दीक्षा ग्रहण कर ली। जिनका यश चक्रवर्ती रूप में उससे भी अधिक तीर्थङ्कर रूप में फैला उनकी जय हो। (श्लोक ५४४)
पंचम सर्ग समाप्त पंचम पर्व समाप्त