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दीक्षा-महोत्सव अनुष्ठित हुआ। तदुपरान्त दृढ़रथ एवं सात सौ पुत्र और चार हजार राजाओं सहित मेघरथ अर्हत् घनरथ के निकट जाकर दीक्षित हो गए । जिसे सहन करना कठिन है-ऐसा परिषह सहन कर तीन गुप्तियों और पांच समितियों का पालन कर शरीर के प्रति ममत्व त्यागी वे महात्मा दृढ़रथ सहित व्रत, तपाचरण और अंगादि शास्त्रों का अध्ययन कर पृथ्वी पर विचरण करने लगे।
(श्लोक ३५०-३५४) अर्हत् के प्रति भक्ति-भावापन्न होकर उन्होंने बीस स्थानक की उपासना कर जिसे अर्जन करना अत्यन्त कठिन है ऐसा तीर्थङ्कर गोत्र कर्म उपार्जन किया।
(श्लोक ३५५) ____सिंह निक्रीड़ित नामक घोर तप कर एक लक्ष पूर्व तक उन्होंने मुनि-धर्म का पालन किया। तत्पश्चात् अमरतिलक पर्वत पर आरोहण कर यथाविधि अनशन ग्रहण कर लिया।
(श्लोक ३५६-३५७) मृत्यु के पश्चात वे सर्वार्थसिद्धि नामक विमान में उत्पन्न हुए। उनके पवित्रमना अनुज दृढ़रथ भी कुछ समय के पश्चात अनशन ग्रहण कर मृत्यु के पश्चात् पूर्ववर्ती विमान में उत्पन्न हुए।
(श्लोक ३५८) चतुर्थ सर्ग समाप्त
पंचम सर्ग जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के कुरु देश में हस्तिनापुर नामक नगर था। उसके प्रासाद के स्वर्णवर्णीय शिखरों की कलाकृति अनायास उद्गत पीतपुष्पा वन्यलता-सी लगती थी। (श्लोक १-२)
इसके चारों ओर वर्तुलाकार एक परिखा थी जिसके स्वच्छ और निर्मल जल में नगर प्राकार दर्पण की भाँति प्रतिबिम्बित होता था। नगर के उद्यान स्थित क्यारियों के निकटर्ती श्याम वक्षराजि जल-आहरण के लिए अवतरित मेव-से लगते थे। नगर की रत्नजड़ित छतों पर चन्द्र किरण प्रतिबिम्बित होने से दही के भ्रम में गृह-मार्जार उन्हें चाटने लगतीं। मन्दिरों से निकलती अगुरु की दीर्घ धूम-शिखा खेचर कन्याओं की अनायास ही लज्जा का निवारण