SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४] दशम स्वप्न में आदि प्रर्हत् की स्तुति के लिए भ्रमर गुंजित कमल रूप बहुमुख से स्तुति करते हुए कमल सरोवर को देखा । ग्यारहवें स्वप्न में पृथ्वी व्याप्त शरत्कालीन श्रभ्रमाला की भाँति उत्क्षिप्त तरंग से चित्त को श्रानन्द प्रदानकारी क्षीर समुद्र ( श्लोक २२२ - २२३ ) देखा | द्वादश स्वप्न में भगवान् देव शरीर में जहां निवास करते थे उस स्नेहवश आए हुए कान्तिमय विमान को देखा । तेरहवें स्वप्न में जैसे नक्षत्र समूह को एकत्रित ऐसा निर्मल कान्ति विशिष्ट रत्न पुंज देखा । (श्लोक २२४ ) किया गया हो ( श्लोक २२५ चौदहवें स्वप्न में त्रिलोक व्याप्त तेजस पदार्थ को एकत्र कर द्युति-सी प्रकाशमान निधूम अग्नि को मुख में प्रवेश करते देखा । रात्रि के अन्त में स्वप्न देखने के पश्चात् कमलवदना मरुदेवी कमलिनी की भांति जागृत हुई । ग्रानन्द जैसे हृदय में समा नहीं रहा है इस प्रकार स्वप्न में देखे हुए समस्त विषय को कोमल अक्षरों में वर्णन कर नाभिराज को सुनाया । नाभिराज ने अपने सरल स्वभाव के अनुसार स्वप्न विचार कर प्रत्युत्तर दिया- 'तुम्हारे उत्तम कुलकर पुत्र होगा ।' ( श्लोक २२६-२२९) उसी समय इन्द्रों का आसन कम्पायमान हुआ जैसे वह यह कहना चाहता हो - ' देवि, आपने जो यह सोचा कि केवल उत्तम कुलकर पुत्र होगा वह अनुचित है ।' हम लोगों का प्रासन क्यों कम्पायमान हुआ ? ऐसा सोचकर इन्द्रों ने उपयोग बल से उसका कारण जाना । पूर्वकृत संकेतानुसार मित्र जिस प्रकार एक स्थान में एकत्र होते हैं उसी प्रकार वे एकत्र होकर स्वप्न के अर्थ बतलाने के लिए भगवान् की माता के पास आए। फिर कृतांजलि होकर विनयपूर्वक जिस प्रकार वृत्तिकार सूत्र का अर्थ स्पष्ट करता है उसी प्रकार स्वप्न फल समझाने लगे । वे बोले'स्वामिनि, आपने प्रथम स्वप्न में वृषभ देखा इससे आपका पुत्र मोहरूपी कर्दम में फँसे हुए धर्मरूपी रथ का उद्धार करने में सफल होगा । द्वितीय स्वप्न में ग्रापने हाथी देखा इससे आपका पुत्र महान् पुरुषों का गुरु और महान् बलशाली होगा। तीसरे में सिंह देखने के कारण वह सिंह-सा धीर, निर्भय, वीर और ग्रस्खलित पराक्रम सम्पन्न होगा । देवि, चौथे स्वप्न में आपने लक्ष्मी देखी
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy