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________________ ८० ] और चन्द्रकान्ता रखा । एक साथ अंकुरित वृक्ष और लता की भांति वे एक साथ बड़े होने लगे । ( श्लोक १६५ - १६७ ) छह मास तक निज सन्तान का पालन विमलवाहन और उसकी स्त्री ने बिना वार्द्धक्य के बिना किसी रोग से पीड़ित हुए मृत्यु को प्राप्त किया । विमलवाहन सुवर्ण कुमार देवलोक में और उसकी स्त्री चन्द्रयशा नाग कुमार देवलोक में उत्पन्न हुई । चन्द्र अस्तमित होने पर चन्द्रिका भी नहीं रहती । वहां से वह हस्ती भी पूर्ण प्रायु होने पर नागकुमार देवलोक नागकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ । काल का माहात्म्य ही ऐसा (श्लोक १६८-१७० ) अपने पिता विमलवाहन की भांति चक्षुष्मान भी हाकार नीति से युगलिकों की मर्यादा की रक्षा करने लगे । ( श्लोक १७१) में है । मृत्यु समय निकट आने पर चक्षुष्मान के भी चन्द्रकान्ता द्वारा यशस्वी और सुरूपा नामक युगल पुत्र और कन्या का जन्म हुप्रा । द्वितीय कुलकर की भांति ही उनके संहनन और संस्थान थे । आयु अवश्य उनसे कम था । आयु और बुद्धि की भांति वे दोनों बढ़न लगे । वे साढ़े सात सौ धनुष दीर्घ थे । इसीलिए वे दोनों जब एक साथ बाहर निकलते तोरण के स्तम्भ की भांति लगते । ( श्लोक १७२ - १७४ ) आयु शेष होने पर मृत्यु प्राप्त कर चक्षुष्मान सुवर्णकुमार और चन्द्रकान्ता नागकुमारों के मध्य उत्पन्न हुए । ( श्लोक १७५ ) यशस्वी कुलकर अपने पिता की तरह गोप जैसे गायों की रक्षा करता है उसी प्रकार सहज रूप में युगलियों का पालन करने लगे; लेकिन उनके समय लोग 'हाकार' दण्ड का इस प्रकार उल्लंघन करने लगे जैसे मदमस्त हाथी अंकुश की उपेक्षा कर देता है । तब यशस्वी ने उन्हें 'माकार' (तुम ऐसा मत करो ) दण्ड से दण्डित करना प्रारम्भ किया । एक ओषधि से यदि व्याधि दूर नहीं होती है तब दूसरी ौषधि का प्रयोग करना उचित है । महामति यशस्वी अरूप अपराधी को हाकार नीति एवं अधिक अपराधकारी को 'माकार' नीति से दण्ड देने लगे । ( श्लोक १७६ -१७८ ) यशस्वी और सुरूपा की आयु भी जब अरूप रह गई तो जिस प्रकार विनय और बुद्धि एक साथ जन्म ग्रहण करते हैं उसी प्रकार
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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