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आलोक देने लगे। चित्रांग कल्प वृक्ष अविनयी और आज्ञालंघनकारी सेवक की भांति अपनी इच्छानुसार पुष्प-माला देने लगे । चित्ररस वृक्ष जिनकी दान देने की इच्छा नहीं है ऐसे सदाव्रत को भांति पूर्व-सा चार प्रकार के रस से सम्पन्न खाद्य अब नहीं देते । मण्यंग कल्पवृक्ष इन्हें दे दूंगा तो फिर कहां पाऊँगा इसी चिन्ता में पीड़ित होकर पहले जैसे अलंकार नहीं देते । कल्पना शक्ति हीन कवि अच्छी कविता की जिस प्रकार धीरे-धीरे सर्जना करते हैं गेहाकार कल्पवृक्ष उसी प्रकार धीरे-धीरे गृह करने लगे । ग्रह द्वारा वाधित मेघ जिस प्रकार थोडा-थोड़ा जल वर्षण करता है उसी प्रकार अनग्न कल्पवृक्ष वस्त्र देने में कार्पण्य करने लगे। उसी समय काल के प्रभाव से युगलियों की देह अवयवों की भांति कल्पवृक्ष पर ममता होने लगी (अर्थात् यह हमारा है ऐसा सोचने लगे)। एक युगलिक ने जिस कल्पवृक्ष का आश्रय लिया है उस कल्पवृक्ष का यदि दूसरा युगल ग्राश्रम ले लेता तो पूर्ववर्ती युगलिक स्वयं को पराभूत समझने लगते । (अधिकार के प्रश्न को लेकर) एक दूसरे में पराभाव को सहन करने में असमर्थ होकर युगलिकगण विमल वाहन को अपने से अधिक शक्तिशाली समझकर उन्हें अपना प्रभु या नेता मान लिया।
(श्लोक १४८-१६०) विमल वाहन को जाति स्मरण ज्ञान से नीतिशास्त्र ज्ञान होने के कारण उनमें कल्पवृक्ष को उन्होंने इस प्रकार बांट दिया जैसे कोई वृद्ध पुरुष अपने गोत्र में धन बांट देता है। यदि कोई दूसरे के कल्पवृक्ष की इच्छा कर मर्यादा का त्याग करता तो उसे दण्ड देने के लिए 'हाकार' नीति का प्रयोग किया। समुद्र का जल जिस प्रकार तट की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता उसी प्रकार—'हाय तुमने ऐसा किया' इस वाक्य को सुनकर वे मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते । वे शारीरिक पीड़ा सहन कर सकते थे; किन्तु 'हाय ! तुमने ऐसा किया'-ऐसा अपमान वाक्य सहन नहीं कर सकते थे (अर्थात् ऐसे वाक्य को अधिक दण्ड समझते थे)। (श्लोक १६१-१६४)
विमल वाहन की प्रायु जब केवल छह माह बाकी रह गई तब उसकी स्त्री चन्द्रयशा ने एक युगल को जन्म दिया । वे युगल असंख्य पूर्व प्रायु सम्पन्न प्रथम संस्थान प्रथम संहनन युक्त कृष्णवर्ण और पाठ सौ धनुष दीर्घ थे : माता-पिता ने उनका नाम चक्षुष्मान