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________________ [७७ ८ मण्यंग नामक कल्पवृक्ष ईप्सित अलंकारादि देते हैं । ६ गेहाकार नामक कल्पवृक्ष इच्छा मात्र से गन्धर्व नगरी की भांति उत्तम गह देते हैं। १० अनग्न नामक कल्पवृक्ष मनचाहा वस्त्र देते हैं । उस समय मिट्टी शर्करा से भी अधिक स्वादयुक्त होती है। नदी आदि का जल अमृत से भी अधिक मीठा होता है । उसी पारे में धीरे-धीरे अायु, संहनन और कल्पवृक्ष का प्रभाव क्रमशः कम होने लगता है। (श्लोक ११८-१२८) द्वितीय पारे में मनुष्य की परमायु दो पल्योपम, शरीर दो कोश लम्बा होता है और वे प्रति तीसरे दिन आहार ग्रहण करते हैं। उस समय कल्पवृक्ष कुछ और कम प्रभाव सम्पन्न, मिट्टी कम स्वादयुक्त और जल कुछ कम मीठा होता है। इस बारे में भी प्रथम आरे की भांति जैसे हाथी को सूड का व्यास क्रमशः कम होता जाता है उसी प्रकार प्रत्येक विषय कम होने लगते हैं। । तृतीय पारे में मनुष्य की आयु एक पल्योपम, शरीर एक कोश लम्बा होता है और वे द्वितीय दिन भोजनकारी होते हैं। इस पारे में भी पूर्ववर्ती अारों की भांति शरीर आयु मिट्टी का स्वाद और कल्पवृक्ष का प्रभाव क्रमशः कम होने लगता है। चतुर्थ पारे में कल्पवृक्ष, मिट्टी का स्वाद और जल मिष्टत्व रहित होता है। इस समय मनुष्य की आयु एक कोटि पूर्व और लम्बाई पांच सौ धनुष होती है । __ पंचम आरे में मनुष्य की परमायु एक सौ वर्ष और लम्बाई सात हाथ होती है। षष्ठ पारे में मनुष्य की परमायु मात्र सोलह वर्ष और लम्बाई सात हाथ होती है। (श्लोक १२९-१३६) दुःषमा-दुःषमा नामक पारा से विलोम क्रम से अर्थात् अवसपिणी के विपरीत रूप से छह प्रारों तक मनुष्य की आयु, लम्बाई आदि वद्धित होने लगते हैं। सागरचन्द्र और प्रियदर्शना तृतीय पारे के शेष भाग में उत्पन्न होने के कारण नौ सौ धनुष लम्बे और पल्योपम की एक दशमांश आयु के विशिष्ट युगल हुए । उनकी देह वज्र ऋषभ नाराच संहनन
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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