SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२] दुष्ट व्यक्ति अन्य के लिए दुःखदायी ही होते हैं। यदि वह कपटी भी है तो मेरी क्या क्षति करता है ? क्योंकि एक साथ रहने पर भी काँच, काँच ही रहेगा मरिण, मरिण ही रहेगी।' (श्लोक ४२-५४) सागरचन्द्र के चुप होने पर श्रेष्ठी बोले – 'पुत्र, यद्यपि तुम बुद्धिमान् हो फिर भी मुझे कहना होगा दूसरों के मनोभावों को जानना अत्यन्त कठिन है।' (श्लोक ५५) .: - पुत्र के मनोभावों के ज्ञाता चन्दनदास ने पूर्णभद्र श्रेष्ठी से अपने पुत्र के लिए शील-सम्पन्न प्रियदर्शना की याचना की । पूर्णभद्र श्रेष्ठी ने भी यह कहकर उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली कि आपके पुत्र ने तो उपकार द्वारा मेरी कन्या को खरीद ही लिया है। _ (श्लोक ५६-५७) शुभ दिन, शुभ मुहूर्त में माता-पिता ने सागरचन्द्र का प्रियदर्शना के साथ विवाह कर दिया। इच्छित दुन्दुभि बजाने से जिस प्रकार आनन्द होता है उसी प्रकार ईप्सित विवाह होने से वर-वधू दोनों ही पानन्दित हो गए। समान अन्त:करण होने से एकात्मा की भाँति उनका प्रेम सारस पक्षी की भांति बढ़ने लगा। चन्द्र द्वारा जैसे चन्द्रिका शोभित होती है उसी प्रकार सौम्याकृति हास्यमयी प्रियदर्शना सागरचन्द्र के द्वारा शोभित होने लगी। दीर्घकाल के पश्चात् दैवयोग से शीलवान्, रूपवान् और सरल स्वभावी दम्पती का योग मिला था। एक अन्य का विश्वास करता था अतः उनमें अविश्वास उत्पन्न ही नहीं हुा । कारण, सरल विश्वासियों के मन में विपरीत शंका का उदय ही नहीं होता। (श्लोक ५८-६३) ___ एक बार सागरचन्द्र जब बाहर गया हुआ था अशोकदत्त उसके घर आया और प्रियदर्शना को बोला-'सागरचन्द्र धनश्रेष्ठी की पत्नी के साथ एकान्त में मिलता है इसका क्या कारण है ?' (श्लोक ६४-६५) स्वभावसरला प्रियदर्शना बोली-'इसका कारण या तो आपके मित्र जाने या उनके अभिन्न हृदयी मित्र आप जानें । श्रेष्ठ व्यवसायियों के एकान्त कृत कार्य को अन्य कोई नहीं जान सकता । फिर भी वे घर में इसकी चर्चा क्यों करेंगे?' (श्लोक ६६-६७) अशोकदत्त बोला-'तुम्हारा पति एकान्त में उससे क्यों मिलता है यह मैं जानता हूँ; किन्तु वह तुमको नहीं बता सकता।'
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy