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________________ [६७ १३ समाधि पद-प्रति मुहूर्त प्रति क्षण प्रमाद परिहार कर शुभ ध्यान में लीन होने पर इस पद की आराधना की जाती है। १४ तप पद-मन और शरीर को जिससे कष्ट न पहुँचे इस प्रकार यथाशक्ति तपस्या करने पर इस पद की आराधना होती है । १५ दान पद-मन, वचन और काय शुद्धिपूर्वक तपस्वियों को यथा शक्ति दान देने पर इस पद की आराधना होती है। १६ वैयावृत्य पद-प्राचार्यादि दस प्रकार के मुनियों को अन्न, जल, पासनादि भक्ति करने पर इस पद की आराधना की जाती है। १७ संयम पद-चतुर्विध संघ के समस्त विघ्न दूर कर सन्तोष उत्पन्न करने पर इस पद की आराधना की जाती है। १८ अभिनव ज्ञान पद-प्रतिदिन नवीन-नवीन सूत्र और अर्थ प्रयत्न पूर्वक ग्रहण करने पर इस पद को आराधना की जाती है। १९ श्रुत पद--श्रद्धा से श्रुत ज्ञान का स्पष्टीकरण, प्रकाशन और निन्दावाद का निराकरण करने पर इस पद की पाराधना होती है। २० तीर्थ पद-विद्या, निमित्त, कविता, वाद और धर्म-कथानों द्वारा शास्त्र का प्रचार करने पर इस पद की आराधना होती (श्लोक ८८२-९०२) इन बीस पदों में एक-एक पद की आराधना भी तीर्थकर नाम कर्म बन्धन का कारण बनती है; किन्तु वजनाभ मुनि ने तो इन बीसों ही पद की आराधना कर तीर्थंकर नाम कर्म बाँधा। (श्लोक ९०३) बाहुमुनि ने साधुनों की सेवा कर चक्रवर्ती के भोगोपभोग प्राप्त होने का कर्म बन्धन किया। तपस्वी मुनियों की विश्रामणा अर्थात् सेवा-शुश्रूषा कर सुबाहु ने अमित बाहुबल लाभ करने का कर्म बन्धन किया। वज्रनाभ मुनि तब बोले-बाहु और सुबाहु ही धन्य हैं जो माधुनों की सेवा और वैयावच्च करते हैं । इस प्रशंसा को सुनकर पीठ और महापीठ मुनिद्वय ने सोचाजो लोगों का उपकार करते हैं लोग उनकी प्रशंसा करते हैं। हम दोनों तो आगम के अध्ययन व ध्यान में निमग्न रहे इसलिए किसी का कोई उपकार नहीं कर सके । अतः हमारी प्रशंसा कौन करे ?
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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