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२ सिद्ध पद-सिद्धि प्राप्त सिद्ध भगवन्तों की भक्ति में रात्रि
जागरणादि उत्सव करने पर, यथार्थ रीति से सिद्धता का
कीर्तन, भजन करने पर सिद्धपद की आराधना होती है। ३ प्रवचन पद-बालक, अस्वस्थ, नवदीक्षित शिष्यादि यतियों पर
अनुग्रह करने पर, प्रवचन अर्थात् चतुर्विष संघ व जैन शासन
पर वात्सल्य स्नेह रखने पर प्रवचन पद की माराधना होती है । ४ आचार्य पद-समादर के साथ आहार, औषध, वस्त्रादि द्वारा
गुरु के प्रति वात्सल्य या भक्ति दिखाने पर इस पद की आराधना
होती है। ५ स्थविर पद-२० वर्ष पर्यन्त दीक्षा पर्याय सम्पन्न को पर्याय
स्थविर, साठ वर्ष की वयःसम्पन्न को वयःस्थविर और समवायांग सूत्र ज्ञाता को सूत्र स्थविर कहा जाता है। इनकी भक्ति करने से इस पद की आराधना होती है। उपाध्याय पद-अपने से अधिक ज्ञान सम्पन्न व्यक्ति को अन्न, वस्त्रादि देकर उनके प्रति वात्सल्य भाव प्रदर्शित करने पर इस
पद की आराधना होती है । ७ साधु पद-उत्कृष्ट तपस्याकारी साधुओं की भक्ति करने पर,
उन्हें सुख-सुविधा देकर उनके प्रति वात्सल्य दिखाने पर इस पद
की आराधना होती है। ८ ज्ञान पद-प्रश्न और वाचनादि द्वारा द्वादशाङ्ग श्रुतों का
अध्यापन करने पर इस पद की आराधना होती है। ६ दर्शन पद-शंका आदि दोष रहित स्थिरता आदि गुण भूषित
और शमादि लक्षणयुक्त सम्यक् दर्शन प्राप्त होने पर इस पद
की आराधना की जाती है । १० विनय पद-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और उपचार-इस प्रकार के
चार कर्मों के अनुष्ठाता विनय सम्पन्न होने से इस पद की
पाराधना होती है। ११ चारित्र पद- इच्छा, मिथ्या, करणादि दस प्रकार के समाचारी
योग और आवश्यक योग कर्म में अतिचार रहित होकर यत्न
करने पर चारित्र पद की आराधना होती है। १२ ब्रह्मचर्य पद-अहिंसादि मूल गुण और समिति प्रादि उत्तर गुण
में अतिचार रहित होकर प्रवृत्त होने से इस पद की अाराधना होती है।