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२३ प्रक्षीण महानसी लब्धि - पात्र स्थित अन्नादि का कितना ही दान क्यों न दिया जाए वह पूर्ववत् ही रहेगा शेष नहीं होगा । २४ अक्षीण महालय लब्धि - इस शक्ति बल से तीर्थंकर सभा की भाँति अल्प स्थान में असंख्य प्राणियों को बैठाने की शक्ति । २५ संभिन्न श्रोत लब्धि - इसके द्वारा एक इन्द्रिय का ज्ञान दूसरी इन्द्रिय द्वारा किया जाना संभव ।
२६ जंघाचारण लब्धि - इस लब्धि से सम्पन्न व्यक्ति एक ही पदक्षेप में जम्बूद्वीप से रुचक द्वीप जा सकता है और लौटने के समय एक पदक्षेप में नन्दीश्वर द्वीप और द्वितीय पदक्षेप में जहाँ से उसने यात्रा की थी उसी जम्बूद्वीप में लौटकर आ सकता है । यदि ऊपर की ओर जाना हो तो एक पदक्षेप में मेरुपर्वत स्थित पाण्डुक बन में जा सकता है । लौटते समय एक पदक्षेप में नन्दनवन और द्वितीय पदक्षेप में जहाँ से यात्रा प्रारम्भ की थी वहीं लौटकर आ सकता है |
२७ विद्याचरण लब्धि - इस लब्धि से सम्पन्न व्यक्ति एक पदक्षेप में मानुषोत्तर पर्वत और द्वितीय पदक्षेप में नन्दीश्वर द्वीप और तृतीय पदक्षेप में जहाँ से यात्रा प्रारम्भ की थी वहाँ लौटकर या सकता था । यदि ऊपर की ओर जाना हो तो मध्यलोक के अनुरूप यातायात कर सकता है ( श्लोक ८६३ - ८७९)
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ये समस्त लब्धियाँ वज्रजंघादि मुनियों को प्राप्त थीं । इसके प्रतिरिक्त प्रसीबिष लब्धि, क्षतिकारक, लाभदायक और भी कई लब्धियाँ उन्होंने प्राप्त की थीं; किन्तु इन सब लब्धियों का व्यवहार उन्होंने कभी नहीं किया । सत्य तो यही हैं कि जो मुमुक्षु है वह प्राप्त वस्तु की इच्छा नहीं रखता, उनका व्यवहार नहीं करता ।
(श्लोक ८८०-८८१)
वज्रनाभ स्वामी ने बीस स्थानक की आराधना कर दृढ़ तीर्थंकर गोत्र कर्म उपार्जन किया । बीस स्थानक का विवरण निम्न प्रकार है
१ अरिहंत पद - अरिहंत और अरिहंत मूत्ति की पूजा करने पर,
अरिहंत देवों की प्रर्थयुक्त स्तुति करने पर और जहाँ उसकी निन्दा हो उसका निराकरण करने पर अरिहंत पद की प्राराधना होती है ।