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८ गुरुत्व शक्ति- इन्द्रादि देव भी जो सहन नहीं कर सकते ऐसीर
वज से भी भारी देह बना लेने की शक्ति । ९ प्राप्ति शक्ति-पृथ्वी पर से ही वृक्ष पत्र की भाँति मेरु के अग्र
भाग एवं गृहादि को स्पर्श करने की शक्ति । १० प्राकाम्य शक्ति-जल पर धरती की भाँति चलने एवं धरती में
जल की भाँति निमज्जित हो जाने की शक्ति । ११ ईशत्व शक्ति-चक्रवर्ती और इन्द्र की भाँति वैभव विस्तार
करने की शक्ति। १२ वशित्व शक्ति-स्वतन्त्र एवं क्रूरतम प्राणी को भी वश में कर
लेने की शक्ति । १३ अप्रतिघाती शक्ति - पर्वत के मध्य से छिद्र में से निकलने की
तरह निकलने की शक्ति । १४ अप्रतिहत अन्तर्धान शक्ति-वायु की भाँति सर्वत्र अदृश्य रूप
धारण करने की शक्ति। १५ कामरूपत्व शक्ति-एक ही समय में अनन्त रूप बनाकर समस्त लोक को भर देने की शक्ति।
(श्लोक ८५२-८६२) १६ बीज बुद्धि - एक बीज से जैसे अनेक बीज उत्पन्न होते हैं उसी
प्रकार एक अर्थ से बहुविध अर्थ करने की शक्ति । १७ कोष्ठ बुद्धि-कोष्ठ में रखा हुआ धान जैसे यथावत रहता है
उसी प्रकार स्मरण करे बिना ही पूर्व श्रुत विषय को स्मृति में
धारण करने की शक्ति । १८ पदानुसारिणी लब्धि-अादि, अन्त व मध्य का कोई भी पद
सुनकर समस्त ग्रन्थ अवधारण करने की शक्ति । मनोबल लब्धि-किसी एक विषय से अवगत होते ही समस्त
आगम साहित्य अवगाहन करने की शक्ति । २० वाग्बल लब्धि-मुहर्त मात्र में मूलाक्षर की भाँति समस्त
प्रागम साहित्य की प्रावृत्ति कर लेने की शक्ति। २१ कायवल लब्धि-इससे बहुत समय तक कायोत्सर्ग कर प्रतिमा
धारण करने पर भी क्लान्ति का लवशेष मात्र नहीं पाता। अमृतक्षीरमध्वाज्याश्रवि लब्धि-इससे पात्र में परिवेशित कदन्न कुत्सित में भी अमृत, क्षीर, मधु, घी का प्रास्वाद उत्पन्न करने की शक्ति। ऐसे लब्धि सम्पन्न की वाणी दुःख पीड़ित मनुष्य के लिए अमृत, क्षीर, मधु, घी की भाँति शान्तिदायक होती है ।