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लेखकीय भूमिका
कलिकाल-सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्र सूरि द्वारा लिखित त्रिशष्टिशलाका-शलाका-चरित दस पर्व में विभक्त ३४००० श्लोक परिमाण है।
इसमें त्रेसठ शलाका-पुरुषों का जीवनवृत्त ग्रथित है जो कि इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्न हुए और विश्व के इतिहास में अपनी पहचान स्थापित कर गए। वे हैं-२४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ६ बलदेव और ९ प्रति वासुदेव ।
इन वेसठ शलाकापुरुषों का जीवन वृत्त समान रूप से विवृत नहीं है । किसी का छोटा है तो किसी का बड़ा। यह स्वाभाविक ही है कारण किसी का जीवन घटना-बहुल है, विविधता लिए हुए है तो किसी का कम। पर इसमें जो लोक-प्रकथाओं का समावेश हुमा है साथ ही साथ जैन धर्म के तत्त्वों की विवति है, वह अपने आप में अनूठी है।
हेमन्द्रचार्य का परिचय देना मुझे अावश्यक नहीं लगता कारण जैन साहित्य के प्रेमी सभी उनसे परिचित हैं। पर यह अवश्य कहना चाहूंगा कि उनकी प्रतिभा जितनी विशाल थी उस तुलना में उनका समादर नहीं हुआ। वे केवल भारत के ही नहीं, विश्व के उच्च कोटि के प्रतिभाधरों में एक हैं। उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से न केवल भारत का ही नाम ऊँचा किया बल्कि विश्व साहित्य को भी समृद्ध किया है।
यह ग्रन्थ अन्य पुराणों की भाँति अनुष्टुप् छंद में रचित है। इस महान् ग्रन्थ को अन दित करने की कल्पना भी मैंने कभी नहीं की थी। आज से नौ साल पहले की बात है। मेरा एक मित्र मुझसे पाकर बोला कि 'करुणा प्रकाशनी' ने ईशान घोष की जातककथा का बंगानुवाद मुद्रित किया है। ऐसी जातक-कथा यदि जैन साहित्य में हो तो उसका अनुवाद भी वे प्रकाशित करना चाहते हैं । बुद्ध की जातककथा के अनुरूप जातककथा तो हमारे साहित्य में है