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________________ ६५३ __कुछ दिन पश्चात् पुष्करपाल से विदा लेकर वजजंघ ने श्रीमती को साथ लिए लक्ष्मी के साथ जिस प्रकार लक्ष्मीपति जाता है उसी प्रकार प्रस्थान किया। शत्रुनाशकारी राजा जब उस कासवन के के निकट पाए तब मार्गदर्शक चतुर व्यक्ति बोले-'अभी इस वन में दो मुनियों को केवलज्ञान उत्पन्न होने के कारण देवतागरण पाए हैं। उनकी द्युति से दृष्टिविष सर्प निविष हो गया है । वही दोनों मुनि सागरसेन और मुनिसेन सूर्य और चन्द्र की भाँति अभी यहाँ अवस्थित हैं। संसार सम्पर्क में वे दोनों सहोदर भाई हैं।' यह सुनकर वजजंघ आनन्दित हुए और विष्णु जिस प्रकार समुद्र में निवास करते हैं उसी प्रकार वे भी वहाँ निवास करने लगे। देवताओं द्वारा परिवत और धर्मोपदेशदानरत उन दोनों मुनियों को राजा ने श्रीमती सहित वन्दना की । उपदेश के अन्त में उन्होंने मुनियों को अन्न-वस्त्रादि दान किया। फिर वे सोचने लगे-धन्य हैं ये मुनि युगल जो सहोदर के सम्पर्क में भी समान कषायरहित, ममतारहित और परिग्रहरहित हैं। मैं ऐसा नहीं हूँ अतः अधम हूं। व्रत ग्रहणकारी पिता के सन्मार्ग के अनुसरणकारी होते हैं तभी तो पिता के औरस पुत्र कहलाते हैं। मैं ऐसा नहीं हूँ अतः क्रीत पुत्र की भाँति हूँ। इतना होने पर भी यदि मैं अभी व्रत ग्रहण करूँ तो उचित ही होगा । कारण, दीक्षा प्रदीप की भाँति ग्रहण मात्र से ही अन्धकार दूर करती है । इसलिए मैं यहाँ से राजधानी लौटकर पुत्र को राज्य सौंप हंस जिस प्रकार हंसगति को प्राप्त होता है मैं भी उसी प्रकार पिता के पदचिह्नों का अनुसरण करूंगा। (श्लोक ७००-७१०) श्रीमती को इसमें आपत्ति होने पर भी दोनों एक मन होकर लोहार्गला नगर को लौट गए । वहाँ राज्यलोभी उनके पुत्र ने मंत्रियों को धन देकर अपने वशीभूत कर लिया था । कारण, जल के लिए कुछ अभेद्य नहीं है उसी प्रकार धन के लिए भी कुछ अभेद्य नहीं हैं। __ (श्लोक ७११-७१२) श्रीमती और वजजंघ दूसरे दिन सुबह पुत्र को राज्य देकर स्वयं दीक्षा ग्रहण करेंगे ऐसा सोचते हुए सो गए। उसी समय सुख से सोए हुए राज्य दम्पती को मारने के लिए राजपुत्र ने उनके कक्ष में विषाक्त धुएं का प्रयोग किया। गह अग्नि की भाँति उसे रोकने में समर्थ कौन था? प्रारण को चिमटे से पकड़ कर निकालने में समर्थ
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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