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________________ ५०] पण्डिता बोली-'यदि ऐसा ही है तो चित्र में चित्रित स्थानों का अंगुली के संकेत से नाम बताओ।' (श्लोक ६६०) दुर्दान्त बोला-'यह सुमेरु पर्वत है, यह पुण्डरीकिनी नगरी पण्डिता बोली - 'इस मुनि का नाम क्या है ?' वह बोला- 'मुनि का नाम मैं भूल गया हूं।' पण्डिता ने फिर पूछा-'मन्त्री परिवृत इस राजा का क्या नाम है ? वह तपस्विनी कौन है ?' दुर्दान्त बोला-'मैं उनका नाम नहीं जानता।' (श्लोक ६६१-६६२) इससे पण्डिता समझ गई यह यथार्थ ललितांगदेव नहीं है । तब वह हंसते-हँसते बोली-'तुम्हारे कथनानुरूप यह तुम्हारे पूर्व जन्म का विवरण है। तुम ललितांगदेव और तुम्हारी पत्नी इस स्वयंप्रभा ने कर्म-दोष से इस वक्त पंगु होकर नन्दीग्राम में जन्म ग्रहण किया है। अपना पूर्वजन्म स्मरण हो आने के कारण इस चित्रपट में उसने अपना पूर्वजन्म चित्रित किया है। मैं जब धातकी खण्ड गई थी तो उसने यह चित्रपट मुझे दिया था। उस पंगु पर दया पा जाने के कारण मैंने तुम्हें खोज निकाला हैं । अब तुम मेरे साथ चलो। धातकी खण्ड में मैं तुम्हें उसके पास पहुंचा दूंगी। वत्स, दारिद्रय-पीड़ित तुम्हारी पत्नी तुम्हारे विरह में दुःखी जीवन व्यतीत कर रही है। अतः तुम उसके पास जाकर तुम्हारी पूर्वजन्म की वल्लभा को आश्वस्त करो।' (श्लोक ६६३-६६७) पण्डिता के चुप होने पर दुर्दान्त के बन्धु-बान्धव परिहास करते हुए बोले- 'बन्धु, लगता है तुम स्त्रीरत्न प्राप्त करोगे। तुम्हारा पुण्योदय हुआ है । अतः तुम जाकर उस पंगु स्त्री से मिलो और आजीवन-उसका लालन-पालन करो।' (श्लोक ६६८-६६९) मित्रों के इस परिहास को सुनकर दुर्दान्त कुमार लज्जित हो गया और विक्रय के लिए लाई हई वस्तु में जो बच जाती है उस भांति मुख बनाकर वहां से विदा हो गया। (श्लोक ६७०) इसके कुछ पश्चात् ही लोहार्गलापुर से आए हुए वज्रजंघ कुमार भी वहां पहुँचे । वे चित्रपट पर अंकित चित्र देखकर मुच्छित हो गए। उन्हें पंखे से हवा की गई, अांख-मुह पर जल के छींटे
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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