________________
[४१
एक दिन श्रीमती अपने क्रीड़ा-उद्यान में गई। वहां एकान्त पाकर पण्डिता नामक एक दासी उससे बोली-'हे राजकन्या ! तुम मुझे अपने प्राणों से भी प्यारी हो और मैं तुम्हारी मां के समान हं । इसलिए, हम लोगों का एक-दूसरे पर अविश्वास रखना उचित नहीं है। तुम किस लिए मौन हो वह कारण मुझे बताओ और अपने दुःखलाघव में मुझे भागीदार बनायो। मैं तुम्हारे दु:ख को समझकर उसका निराकरण करने की चेष्टा करूंगी। कारण, रोग जाने बिना उसका निराकरण होगा कैसे ?' (श्लोक ६४३.६४६)
तब श्रीमती ने अपने पूर्व भव की कथा पण्डिता को इस प्रकार बताई जैसे शिष्य प्रायश्चित के लिए गुरु के सम्मुख यथायथ तथ्य विवृत करता है। पण्डिता ने तदनुरूप एक चित्रपट अंकित करवाया और उसे लेकर वहां से प्रस्थान किया।
(श्लोक ६४७.६४८) उसी समय चक्रवर्ती वज्रसेन का जन्मदिन निकटवर्ती होने से उस उपलक्ष में अनेक राजा और राजपुत्र वहां आए थे । श्रीमती के मनोभावों को व्यक्त करने वाला वह चित्रपट लेकर पण्डिता जिस राजपथ से वे पा रहे थे उसी राजपथ के किनारे खड़ी हो गई। जो पाए उनमें जो शास्त्रज्ञ थे पागम के अनुसार चित्रित नन्दीश्वर द्वीप आदि देखकर उसकी स्तुति करने लगे। अनेक श्रद्धा से सिर झुका-झुकाकर चित्रपट अंकित अर्हत् मूत्ति का विशद् वर्णन करने लगे। कलाभिज्ञगण सूक्ष्म रूप से रेखा-अङ्कन आदि वास्तविकता की प्रशंसा करने लगे। कोई सान्ध्य अभ्र की भांति चित्रपट पर चित्रित सफेद, पीला, नीला, लाल आदि रंगों का वर्णन करने लगे।
(श्लोक ६४९-६५४) इसी बीच नामानुरूप गुणयुक्त दुर्दर्शन नामक राजा का दुर्दान्त नामक पुत्र प्राया। वह कुछ क्षण तक चित्रपट को देखता रहा और तभी मूच्छित होने का बहाना कर धरती पर गिर पड़ा। फिर संज्ञा लौट ग्राई हो इस प्रकार धीरे-धीरे उठ बैठा । लोगों ने उसके बेहोश होने का कारण पूछा तो वह झूठ बनाकर बोला--
'इस पट में किसी ने मेरे पूर्व जन्म की कथा चित्रित की है। अतः पट देखकर पूर्वजन्म स्मरण हो पाया है। यह मैं ललितांगदेव हूँ और यह मेरी देवी स्वयंप्रभा है। इस प्रकार वहां जो-जो घटना चित्रित थी उसका वर्णन किया।'
(श्लोक ६५५-६५९)