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________________ ४२] को सूई की तरह बींध गई । अधम बलद जिस प्रकार भार परित्याग कर भाग जाता है उसी प्रकार वह अपने परिवार का परित्याग कर अन्यत्र चला गया। पति के विदेश गमन का संवाद प्रसववेदना से पीड़ित नागश्री को घाव पर नमक छिड़कने की भांति लगा । अतः दुःखिता नागश्री ने उस कन्या का कोई नाम नहीं रखा। इसलिए लोग उसे निर्नामिका कहकर पुकारने लगे। नागश्री ने भली-भांति लालन-पालन नहीं किया फिर भी वह दिन-दिन बड़ी होने लगी। ठीक हो तो कहा है-'वज्राहत होने पर भी यदि पायु रहती है तो उसकी मृत्यु नहीं होती।' उस अभागिन मां के दुःख का कारण बनकर दूसरे के घर छुट-पुट काम कर किसी प्रकार वह अपना दिन व्यतीत करने लगी। (श्लोक ५३८.५४३) एक दिन उसने किसी धनी लड़के के हाथ में मोदक देखा। उसने भी मोदक मांगा। उसकी मां क्रोध से दांत पीसते-पीसते बोली-'तेरा क्या बाप है जो तू मोदक खाना चाह रही है ? यदि मोदक खाने का इतना ही शौक है तो रस्सी लेकर अम्बरतिलक पहाड़ पर जा और वहां से लकड़ी काटकर ला।' (श्लोक ५४४-५४६) मां की अग्निकुण्ड-सी ज्वालामयी वाणी सुनकर निर्नामिका रस्सी लेकर रोती-रोती अम्बरतिलक पहाड़ की ओर चली। उस समय उसी पर्वतशिखर पर एक रात्रि प्रतिमाधारी मुनि युगन्धर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया था। इस उपलक्ष में देवतागण उनका केवलज्ञान समारोह मनाने के लिए एकत्र हुए थे। यह समाचार विदित होते ही निकटवर्ती ग्राम और नगर के लोग भी पर्वतशिखर की ओर जाने लगे। विभिन्न प्रकार के वस्त्रालंकारों से भूषित नर-नारियों को जाते देखकर निर्नामिका विस्मित होकर चित्र लिखित-सी उनकी अोर देखती रही। जब उसे उनसे पर्वतशिखर पर जाने का कारण मालम हुया तो वह भी दु:खभार की भांति सिर के काष्ठभार को पटक कर पर्वतशिखर पर चढ़ गई। कारण, तीर्थ तो मबके लिए ही समान है। उसने मुनि के चरण । कमलों को कल्पवृक्ष मानकर पुलकित चित्त से उनका वन्दन और नमस्कार किया। ठीक ही कहा है-'बुद्धि भाग्य के अनुरूप ही हो जाती है।' (श्लोक ५४७-५५४) महामुनि ने तब गम्भीर स्वर में लोक हितकारी और प्रानन्दकारी धर्मोपदेश दिया : (श्लोक ५५५)
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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