________________
वे अजगर योनि प्राप्त कर अपने ही कोषागार में उत्पन्न हुए और वहीं रहने लगे। वह सर्वभक्षी क्रूर अजगर जो भी कोषागार में प्रवेश करता, उसे ही खा डालता। एक बार उसी अजगर ने मणिमाली को कोषागार में प्रवेश करते देखा । पूर्वजन्म के ज्ञान से जब वह जान पाया कि मणिमाली उसका पुत्र है तो वह शान्त होकर स्नेह की साक्षात् मूर्ति-सा बना वहाँ उपस्थित हुआ। यह देखकर मणिमाली समझ गया कि यह अजगर उसके पूर्व जन्म का कोई आत्मीय या बन्धु है। अन्ततः मणिमाली ने किसी ज्ञानी से यह ज्ञात किया कि यह उसका पिता है। तब उसने उस अजगर को जिनधर्म का उपदेश दिया। अजगर ने धर्म ग्रहण कर त्याग-व्रत किया और शुभध्यान में मृत्यु वरण कर स्वर्ग में देवता रूप में उत्पन्न हुग्रा । उसी देवता ने पाकर मणिमाली को एक दिव्य मुक्तामाला उपहार में दी। वही माला अापने कण्ठ में धारण कर रखी है। आप हरिश्चन्द्र के वंशधर हैं। मैंने सुबुद्धि के वंश में जन्म ग्रहण किया है । एतदर्थ मेरा और अापका सम्बन्ध वंश परम्परागत है। इसीलिए मैं अापसे निवेदन करता हूं कि पाप धर्म संलग्न बनिए। फिर मैंने असमय में आपको धर्मकथा क्यों कही इसका भी कारण है । अाज नन्दन वन में मैंने दो चारण मुनियों को देखा। वे दोनों ही जगत् प्रकाशक और महामोहरूपी घन अन्धकार को विनष्ट करने वाले चन्द्र-सूर्य की भाँति ज्ञात होते थे। अपूर्व ज्ञान सम्पन्न वे दोनों धर्मोपदेश दे रहे थे। मैंने उनसे यह पूछा कि यापकी आयु कितनी है ? इस पर वे बोले कि आपकी आयु अब मात्र एक मास अवशेष रही है। इसीलिए हे राजन्, मैं आपको शीघ्र धर्मकार्य में संलग्न होने का अनुरोध करता हूँ।
(श्लोक ४३२) महाबल बोले-'हे स्वयंबुद्ध, हे बुद्धि के समुद्र, मेरे एकमात्र बन्धु तो तुम्ही हो। तुम्हीं मेरे हितचिन्तन में सर्वदा तत्पर रहते हो। विषयासक्त एवं मोहनिद्रा में निद्रित मुझे जागृत कर तुमने बहुत अच्छा कार्य किया है । अब मुझे यह बताओ कि मैं धर्म-साधना कैसे करूं ? आयु कम है। इतने अल्प समय में मैं कितनी धर्माराधना करने में सक्षम हो पाऊँगा? अग्नि लग जाने पर कुआँ खुदवाने से क्या अग्नि बुझाई जा सकती है ? (श्लोक ४४७-४४९)