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________________ ३४] भय से भीत हरिश्चन्द्र, रोग से डरा हुआ मनुष्य जिस प्रकार औषध पर श्रद्धा रखता है उसी प्रकार, सुबुद्धि कथित धर्म पर श्रद्धा रखने लगा ।' ( श्लोक ४२० - ४२२) 'एक बार उसी नगरोद्यान में शीलंकर नामक एक महामुनि ने केवल ज्ञान प्राप्त किया । उन्हें वन्दना करने के लिए देवताओं का आगमन हुआ । सुबुद्धि ने यह बात हरिश्चन्द्र से कही | निर्मलहृदय हरिश्चन्द्र घोड़े पर सवार होकर मुनि के पास गए और मुनि की वन्दना कर उनके सम्मुख बैठ गए। मुनि ने कुमति रूप अन्धकार को दूर करने के लिए चन्द्रिका तुल्य धर्मोपदेश दिया । उपदेश के अन्त में हरिश्चन्द्र ने हाथ जोड़कर मुनि से जिज्ञासा की - हे महात्मन्, मृत्यु के पश्चात् मेरे पिता ने किस गति को प्राप्त किया है ? ' ( श्लोक ४२३- ४२६) त्रिकालदर्शी मुनि बोले- 'हे राजन्, आपके पिता सप्तम नरक गए हैं । उनके जैसे मनुष्य का और कहीं स्थान नहीं हो सकता ।' (श्लोक ४२७ ) यह सुनकर हरिश्चन्द्र के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया । वे मुनि को वन्दना कर अपने प्रासाद में लौट गए। वहाँ जाकर पुत्र को सिंहासनारूढ़ कर सुबुद्धि से कहा - 'मैं प्रव्रज्या ग्रहण करूंगा । तुम जिस प्रकार मुझे धर्म सुनाते थे उसी प्रकार अब इसे सुनाते रहना ।' ( श्लोक ४२८-४२९ ) सुबुद्धि ने कहा- 'मैं भी आपके साथ दीक्षा ग्रहण करूँगा । मेरा पुत्र आपके पुत्र को धर्म सुनाएगा ।' ( श्लोक ४३० ) 'इस प्रकार राजा हरिश्चन्द्र और सुबुद्धि ने कर्मरूप पर्वत को विनष्ट करने वाली व्रतरूप प्रव्रज्या ग्रहरण कर दीर्घ दिन तक मुनिधर्म का पालन करते हुए मोक्ष प्राप्त किया ।' (श्लोक ४३१) स्वयं बुद्ध ने फिर कहा - 'देव, ग्रापके वंश में दण्डक नामक अन्य एक राजा ने जन्म ग्रहण किया था । वे शत्रुत्रों के लिए यमराज तुल्य थे । उनके मरिणमाली नामक एक पुत्र था । मणिमाली सूर्य की भाँति तेजस्वी थे । दण्डक पुत्र, स्त्री, मित्र, धनरत्न सुवर्ण आदि में आसक्तिपरायण थे एवं इन्हें वे त्रारणों से भी अधिक प्यार करते थे । आयुष्य समाप्त होने पर प्रार्तध्यान में उनकी मृत्यु हुई ।
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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