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________________ ३०] स्खलित हो जाती है । जिस प्रकार धूर्त्त मनुष्य की मित्रता अल्पकाल के लिए ही सुखदायक होती है उसी प्रकार मोह उत्पन्नकारी संगीत का भी बार-बार श्रवण अन्ततः दुःखदायक हो जाता है । इसलिए हे प्रभु, पाप का मित्र, धर्म का विरोधी, नरक के द्वार को प्रशस्त करने वाले विषय का दूर से ही परित्याग कर दीजिए। हम देखते हैं यहाँ एक सेव्य है तो एक सेवक है । एक दाता है तो एक याचक है, एक प्रारोही है तो एक वाहन है, एक ग्रभयदाता है तो एक अभययाचक है । इन सभी से तो इसी लोक में धर्म-अधर्म का फल परिदृष्ट होता है । हम सब को देखकर भी जो स्वीकार नहीं करते उनका मंगल ही हो । मैं इस विषय में और क्या कहूँ ? राजन्, आपको ग्रसत्य वचन की भाँति दुःखदायी अधर्म का परित्याग कर सत्य वचन की भाँति सुख का द्वितीय काररण रूप धर्म का ग्राथय ग्रहण करना उचित है ।' (श्लोक ३८६-३७४) यह सब सुनकर शतमति नामक मन्त्री बोला- 'प्रति मुहूर्त्त भंगुर पदार्थ विषयक ज्ञान के अतिरिक्त ग्रन्य कोई ग्रात्मा नहीं है । वस्तुतः स्थिरता विषयक जो बुद्धि है वह वासना का ही परिणाम है । इसीलिए पूर्व र अपर मुहूर्त्त की वासना रूप एकता वास्तविक है, मुहूर्त की एकता वास्तविक नहीं है ।' ( श्लोक ३३५-३७६) तब स्वयंवुद्ध ने कहा - 'कोई भी वस्तु ग्रन्वय या परम्परा रहित नहीं है । जिस प्रकार गाय से दूध पाने के लिए जल, घास खिलाने की कल्पना करनी होती है उसी प्रकार ग्राकाश- कुसुम की भाँति या कच्छप के वाल की भाँति इस संसार में ग्रन्वय रहित कोई वस्तु नहीं होती । इसलिए क्षणभंगुरता की बात करता वृथा | यदि वस्तु क्षणभंगुर है तो संतान परम्परा को भी क्षणभंगुर कहा जा सकता है | यदि हम सन्तान की नित्यता स्वीकार करते हैं तब अन्य पदार्थ को क्षणिक कैसे कह सकते हैं ? यदि समस्त पदार्थ को ही क्षणिक कहें तब धरोहर एवं धन को पुनः चाहना, जो बीत गया उसे पुनः स्मरण करना, अभिज्ञान (चिह्न) तैयार करना कैसे सम्भव हो सकता है ? जन्म के दूसरे मुहूर्त ही जातक यदि विनष्ट हो जाता है तब तो पर मुहूर्त्त में उसे माता-पिता की सन्तान नहीं कहा जा सकता और न ही बालक माता-पिता को माता-पिता कहेगा । अतः सभी वस्तु को क्षणभंगुर कहना प्रसंगत
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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