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________________ [२९ के बिना सद्यजात शिशु बिना शिक्षा प्राप्त किए ही मातृस्तन का पान कैसे कर सकता है ? इस जगत् में जैसा कारण होता है वैसा ही कार्य होता है । तब ग्रचेतन भूत ( पृथ्वी, आप, तेज व वायु) से चेतन किस प्रकार उत्पन्न हो सकता है ? हे संभिन्नमति, बोलो, चेतन प्रत्येक भूत से उत्पन्न होता है या उसके समवाय से ? यदि तुम कहते हो कि प्रत्येक भूत से चेतना उत्पन्न होती है तब तो जितने भूत हैं उतनी ही चेतना होना उचित है और यदि कहते हो कि समस्त भूत के समवाय से चेतना उत्पन्न होती है तब भिन्न-भिन्न स्वभाव युक्त भूत से एक स्वभाव सम्पन्न चेतना कैसे उत्पन्न हो सकती है ? ये सभी तथ्य विचारणीय हैं । पृथ्वी रूप, रस, गन्ध और स्पर्श गुणयुक्त है, जल रूप, स्पर्श और रस गुण युक्त है, तेज रूप और स्पर्श गुण युक्त है एवं वायु केवल स्पर्शयुक्त है, इस प्रकार भूत के भिन्नभिन्न स्वभाव सभी को ज्ञात हैं । यदि तुम कहो कि जल से भिन्न गुणयुक्त मुक्ता जिस प्रकार उत्पन्न होता है उसी प्रकार अचेतन भूत से चेतना उत्पन्न होती है तो ऐसा कहना उपयुक्त नहीं है । कारण मुक्ता में जल होता है । दूसरे में मुक्ता और जल दोनों ही पौद्गलिक हैं । पुद्गल से उत्पन्न होने के कारण उनमें भेद नहीं है । तुमने गुड़, मैदा और जल से उत्पन्न मादक शक्ति का उदाहरण दिया है । किन्तु वह मादक शक्ति भी अचेतन है । ग्रतः चेतना के लिए यह दृष्टान्त कैसे ठीक हो सकता है ? देह और श्रात्मा एक है यह कभी नहीं कहा जा सकता । एक प्रस्तर खण्ड की लोग पूजा करते हैं अन्य प्रस्तर खण्ड पर मूत्र त्याग, यह दृष्टान्त भी गलत है । कारण प्रस्तर चेतन है । इसलिए उसे सुख-दुःख का अनुभव कैसे होगा ? अतः इस शरीर से भिन्न परलोकगामी आत्मा है और धर्म-अधर्म भी हैं । ( कारण, परलोकगामी ग्रात्मा ही इस जन्म का अच्छा-बुरा फल लेकर जाती है और वहाँ भोग करती है ।) जिस प्रकार अग्नि के उत्ताप से मक्खन गल जाता है उसी प्रकार स्त्रियों के वशीभूत होना भी पुरुषों के विवेक को नष्ट कर देता है । अनर्गल और अधिक रसयुक्त आहार ग्रहरण से मनुष्य पशु की भाँति उन्मत्त होकर उचित कार्य को भूल जाता है । अगरु, चन्दन एवं केशर कस्तूरी आदि की सुगन्ध से कामदेव सूर्य की भाँति मनुष्य पर ग्राक्रमण करता है । जिन प्रकार काँटों में वस्त्र अटक जाने से मनुष्य की गति अवरुद्ध हो जाती है उसी प्रकार स्त्रीरूपी काँटे में उलझकर पुरुष की गति
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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