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________________ [२७ द्वारा ही पाप विद्याधरों के राजा हुए हैं। इसलिए अब इससे और अधिक प्राप्त करने के लिए धर्म का आश्रय ग्रहण करिए।' (श्लोक ३०२-३२३) स्वयंबुद्ध मन्त्री की यह बात सुनकर अमावस्या की रात्रि के अन्धकार की भाँति अज्ञान रूप अन्धकार की खान रूप, विष रूप, विषममति सम्पन्न संभिन्नमति नामक मन्त्री बोले-'शाबास, स्वयं बुद्ध, गाबास ! उद्गार से आहार की प्रतीति होती है उसी प्रकार तुम्हारे वाक्य द्वारा तुम्हारे मनोभाव को जाना जा सकता है। सर्वदा आनन्द में रहने वाले स्वामी के सुखे के लिए तुम्हारे जैसा मन्त्री ही ऐसा बोल सकता है, दूसरा नहीं। किस कठोर स्वभावी उपाध्याय के पास तुमने शिक्षा प्राप्त की है जो इस प्रकार वज्रपात से कठोर वाक्य स्वामी को कहने में तुम सक्षम हो गए हो ? सेवक जबकि अपने-अपने भोग के लिए स्वामी की सेवा करता है तब वह स्वामी को यह कैसे कह सकता है कि पाप भोग मत करिए। जो इस जन्म में प्राप्त भोग्य की उपेक्षा कर परलोक के लिए यत्न करे वह करतल स्थित लेह्य पदार्थ का परित्याग कर कोहनी चाटने की भाँति मूर्खता का परिचय देता है । धर्म के द्वारा परलोक में सुफल प्राप्त होता है यह कहना भी भूल है। कारण,जो परलोक में निवास करते हैं उनका ही जव अभाव है तो परलोक प्राया कहाँ से ? जिस प्रकार गुड़, मैदा और जल से मादक शक्ति उत्पन्न होती उसी प्रकार पृथ्वी अप तेज और वायु से चेतन शक्ति उत्पन्न होती है। शरीर से अलग और कोई देहधारी नहीं है जो इस लोक का परित्याग कर परलोक जाएगा। अत: निःसंकोच होकर विषय सुख भोग करना उचित है। फिर अपनी आत्मा को ठगना भी तो उचित नहीं है। स्वार्थ नष्ट करना मूर्खता मात्र है । धर्माधर्म की शंका करना भी उचित नहीं है। कारगा वह सुख में विघ्न उत्पन्न करता है। फिर धर्माधर्म का गधे के मांग की भाँति कोई अस्तित्व ही नहीं है। पत्थर के एक टुकड़े को स्नान, विलेपन कर पुष्प और वस्त्रालंकार से लोग पूजा करते हैं तो किसी दूसरे पत्थर पर बैठकर मूत्र त्याग करते हैं। जरा बतायो उन दोनों प्रस्तर खण्डों ने क्या कोई पुण्यपाप किया था ? यदि जोव मात्र कर्म के कारण जन्म ग्रहण करते हैं और मृत्यु को प्राप्त होते हैं तो फिर जल में बुदबुदे उठते हैं और नष्ट होते हैं वे किस कर्म के कारण होते हैं? जो जब तक इच्छावश
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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