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________________ ३२४] एक बार इसी प्रकार जलक्रीड़ा कर महाराज भरत इन्द्र की भाँति संगीत कराने की इच्छा से विलासमण्डप में गए। वहाँ बाँसुरी बजाने वाले उत्तम पुरुष मन्त्र में ॐकार की तरह संगीत कर्म प्रथम है ऐसा मधुर स्वर बाँसुरी में भरने लगे। वीणावादनकारी कर्ण सुख प्रदान करने वाले और व्यंजन धातु से पुष्ट ऐसे पुष्पादिक स्वर में ग्यारह प्रकार से वीणा बजाने लगे। सूत्रधार अपनी काव्य प्रतिभा का अनुसरण कर नृत्य और अभिनय के मातृ तुल्य प्रस्तार सुन्दर नामक ताल देने लगे। मृदंग एवं प्रणव नामक वाद्य बजाने वाले प्रिय मित्र की तरह परस्पर सामान्य सम्पर्क का भी त्याग न कर अपने वाद्य बजाने लगे। हा-हा ह-ह नामक देवताओं का और गन्धर्वो का अहंकारविनष्टकारी गायक स्वरगीति में सुन्दर ऐसे सूखीन-नवीन शैली के गीत गाने लगे। नत्य और ताण्डव में चतुर नटियां विचित्र प्रकार के अङ्ग-विपेक्षों से सबको चकित कर नृत्य करने लगी। महाराज भरत ने देखने लायक यह नाटक निविघ्न रूप से देखा । कारण, समर्थ पुरुष जैसी इच्छा हो वैसा व्यवहार करें उसमें उन्हें कौन रोक सकता है ? इस प्रकार प्रभु के मोक्ष जाने के पश्चात् पाँच लाख वर्ष तक महाराज भरत संसार सुख भोगते रहे। (श्लोक ७०६-७१४) एक दिन भरतेश्वर स्नान कर वलिकर्म की अभिलाषा से देवदृष्य वस्त्र से शरीर को परिष्कार कर केश में पुष्पमाल्य धारण कर समस्त शरीर में गोशीर्ष चन्दन का लेप कर अमूल्य दिव्य रत्नों के अलङ्कारों को समस्त देह में धारण कर अन्तःपुर की ललना सहित छड़ी-दार के प्रदर्शित पथ से अन्तःपुर के प्राभ्यन्तर में स्थित रत्नमय दर्पणगृह में गए । वहाँ आकाश और स्फटिक मणि की तरह निर्मल और मनुष्याकृति की तरह वृहद् दर्पण में अपने स्वरूप को देखने के समय महाराज भरत की अंगुली से अंगूठी खिसक कर गिर पड़ी। नृत्य के समय जिस प्रकार मयूर का एक-प्राध पंख खिसक कर गिर जाता है और वह जान भी नहीं पाता उसी प्रकार महाराज भरत मी अंगुली से खिसक कर गिर जाने वाली अंगठी के विषय में कुछ नहीं जान पाए। धीरे-धीरे शरीर के समस्त भाग को देखते हुए चन्द्रिकाहीन चन्द्रकला की तरह अंगठी रहित अपनी अंगुली उन्हें कान्तिहीन लगी। अरे ! अंगुली शोभाहीन कैसे ? सोचते हुए महाराज भरत की दृष्टि धरती पर गिरी अपनी अंगूठी पर
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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