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________________ [३१९ लगने लगा। फिर संसार रूपी शीत के भय से भीत मनुष्यों के लिए मानो अग्निकुण्ड हो इस प्रकार कर्पूर की प्रारती की। (श्लोक ६३८-६४४) इस प्रकार पूजा कर ऋषभ स्वामी को नमस्कार कर शोक और भय से आक्रान्त बने चक्रवर्ती उनकी स्तुति करने लगे१ हे जगत्सुखकर, हे त्रिलोकनाथ,पाँच कल्याणक केसमय नारकीयों को भी सुख प्रदान करने वाले मैं आपको नमस्कार करता हूँ। सूर्य की तरह विश्व हितकारी हे स्वामी ! आपने सर्वदा प्रव्रजन कर इस चराचर जगत् पर अनुग्रह किया है। आर्य और अनार्य उभय के प्रति प्रीतिवान् होकर सर्वदा प्रव्रजन करने वाले आप को और पवन की दोनों की गति परोपकार के लिए ही होती है। इस लोक में मनुष्यों का उपकार करने के लिए ही आपने वहत दिनों तक प्रव्रजन किया; किन्तु मोक्ष में किसका उपकार करने के लिए आपने गमन किया ? आप जिस लोकाग्र में गए हैं वह सचमुच ही लोकाग्र हो गया है एवं आप जिसे छोड गए हैं वह मृत्युलोक अर्थात् मर जाने योग्य हो गया है । हे नाथ ! जो विश्व कल्याणकारी आपकी देशना का चिन्तन करते हैं वे भव्य प्राणी अभी भी अःपको अपने सम्मुख देख सकते हैं । जो प्रापका रूपस्थ ध्यान करते हैं उन महात्मानों के लिए भी आप प्रत्यक्ष हैं। हे परमेश्वर ! जिस प्रकार आपने ममता रहित होकर समस्त संसार को त्याग कर दिया है उसी प्रकार आप मेरे मन का त्याग कभी मत करिएगा। (श्लोक ६४५-६५३) इस प्रकार आदीश्वर भगवान की स्तुति कर प्रत्येक जिनेन्द्र की वन्दना कर वे स्तुति करने लगे। २ विषय कषायों से अजित विजया माँ की गोद के माणिक्य रूप और जित राजा के पुत्र हे जगत्स्वामी अजितनाथ ! आपकी जय हो। ३ संसार रूपी अाकाश को अतिक्रमण करने में सूर्य रूप श्री सेना देवी के गर्भ से उत्पन्न और जितारि राजा के पुत्र हे सम्भवनाथ! मैं आपको नमस्कार करता हूं। ४ संबर राजा के वंशालंकार रूप पूर्वदिक् रूपा सिद्धार्थदेवी के
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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