SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३१७ रखे सुवर्ण प्रदीपदान, रत्नों की करण्डिकाएं, नदी से उठे आवर्त की भांति गोलाकार फलों की डालियाँ, उत्तम अंगोछे, अलंकारों के डिब्बे, सोने के धूपदान और भारती, रत्नों का मङ्गल दीपक, रत्नों की झारी, मनोहर रत्नमय थाल, सुवर्ण-पात्र, रत्नों के कलश, रत्नों के सिंहासन, रत्नों के अष्ट मांगलिक, तेल रखने के गोल डिब्बे, धूप रखने का सुवर्ण-पात्र और सोने के करताल ये समस्त वस्तुएँ चौबीस अरिहंतों की प्रत्येक प्रतिमा के निकट सत्रह-सत्रह थीं। इस प्रकार विभिन्न रत्नों का त्रैलोक्य सुन्दर चैत्य भरत चक्रवर्ती की आज्ञा मात्र से ही सब प्रकार से कलाविद् वर्द्धकीरत्न ने उसी मुहर्त में विधि अनुरूप तैयार कर दिया। मानो मूर्तिमान धर्म हो ऐसे चन्द्रकान्त मणियों के गढ़ में दीवारों पर बनाए ईहामृग, वलीवर्द, मकर, अश्व, मनुष्य, किन्नर, पक्षी, शिशु, रूरूमृग, अष्टापद, चमरीमृग, हस्ती, वन लता और कमल चित्रों से विचित्र और अद्भुत वह चैत्य घने वृक्षों से युक्त उद्यान की तरह शोभा दे रहा था। उनके निकट रत्नों के स्तम्भ थे । मानो आकाश गंगा की तरंग हो ऐसी पताकानों से वह चैत्य मनोहर लग रहा था । उच्च स्वर्ण के ध्वज-दण्ड से वह उन्नत लग रहा था। निरन्तर प्रसारित पताकाओं के घुघरू शब्द विद्याधारियों की कटि मेघलानों की ध्वनि का अनुसरण कर रही थी। उस पर विशाल कान्तियुक्त पद्मराग मणि से बह चैत्य माणिक्य जड़ित मुद्रिका की तरह शोभा पा रहा था। कहीं वह पल्लवित, कहीं कवचावृत, कहीं रोमांचित, कहीं किरण लिप्त-सा लग रहा था। गेरु चन्दन के रत्नमय तिलक से वह चिह्नित किया गया था। निर्माण समय में पत्थरों के सन्धि-स्थल इस तरह मिलाए गए थे कि देखकर लगता मानो वह एक ही पत्थर का है । उस चैत्य के नितम्ब भाग में हाव-भावों से मनोहर दिखती माणिक्य की पुत्तलिकाएँ इस भाँति रखी हुई थीं कि वे अप्सराओं द्वारा अधिष्ठित मेरुपर्वत की तरह शोभित हो रहा था। उसके दरवाजे के दोनों ओर चन्दन रस में लिप्त दो कुम्भ रखे हुए थे। उनसे दरवाजे विकसित श्वेत कमल से अंकित हों ऐसे लग रहे थे। धूप सुवासित तिरछी बँधी लटकती मालाओं से वह रमणीय लग रहा था। उसके तल भाग में पाँच रंगों के फलों के सुन्दर गुच्छे लटकाए गए थे। यमुना नदी से जिस प्रकार कलिन्द पर्वत प्लावित रहता है उसी प्रकार कर्पूर और कस्तूरी मिश्रित कर तैयार किए धूप के धुएं से वह सर्वदा व्याप्त
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy