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[३१५ मण्डप निर्मित करवाए। उन चार मुख्य मण्डपों के आगे चलमान श्री वल्ली के मध्य चार प्रेक्षा मण्डप निर्मित करवाए । उन प्रेक्षा मण्डपों के मध्य सूर्य बिम्ब का भी उपहास करने वाले वज्रमय अक्षवाट बनवाए। प्रत्येक अक्षवाट में कमलकरिणका की तरह एक मनोहर सिंहासन बनवाया। प्रेक्षा मण्डप के आगे एक एक मरिणपीठिका बनवायी, उस पर रत्नों के मनोहर चैत्य स्तूप निर्मित करवाए। प्रत्येक चैत्य स्तूप पर आकाश को प्रकाशित करने वाली प्रत्येक दिशा में बड़ी मरिण-पीठिकाएं निर्मित करवायीं। उन मरिणपीठिकानों पर चैत्य स्तूप के सामने पाँच सौ धनुष प्रमाण रत्न निर्मित ऋषभानन, वर्द्धमान, चन्द्रानन और वारिषेण को चार शाश्वत जिन-प्रतिमाएं स्थापित करवायीं। पर्यकासन में बैठी मनोहर नेत्र रूपी कमलिनियों के लिए चन्द्रिका तुल्य वे प्रतिमाएं ऐसी थीं मानो नन्दीश्वर महाद्वीप के चैत्य के मध्य हैं । प्रत्येक चैत्य के स्तूप के सम्मुख, अमूल्य माणिक्यमय विशाल सुन्दर पीठिकाएँ निर्मित करवायीं । प्रत्येक पीठिका पर एक-एक चैत्य वृक्ष बनवाए। प्रत्येक चैत्य वृक्ष के निकट अन्य एक एक मरिण-पीठिका बनवायो और प्रत्येक पर एक-एक इन्द्र-ध्वज तैयार करवाया। वे इन्द्र-ध्वज ऐसे लग रहे थे मानो प्रत्येक दिशा में धर्म ने अपना जय-स्तम्भ रोपण किया है। प्रत्येक इन्द्र-ध्वज के सामने तीन सीढ़ी और तोरणयुक्त नन्दा नामक पुष्करिणी निर्मित करवाई। स्वच्छ, शीतल, जलपूर्ण और विचित्र कमलों से सुशोभित पुष्करिणी दधिमुख पर्वत को पुष्करिणी की तरह मनोहर लग रही थी। उसी सिंह निषद्मा महा-चैत्य के मध्य भाग में वृहद् मरिण-पीठिका निर्माण करवाई और समवसरण की तरह ही उसके मध्य भाग में विचित्र रत्नमय एक देवछन्दक निर्मित करवाया। उस पर विभिन्न रंगों के चन्दोवे निर्मित करवाए। वे असमय में भी सन्ध्याकालीन मेघ को शोभा उत्पन्न कर रहे थे । उन चन्दोवों के मध्य और निकट वज्रमय अंकुश वनवाए। फिर भी चन्दोवों की शोभा निरंकुश ही थी। उन अंकुशों पर कुम्भ के समान गोल आमलकी के फल जैसे बड़े-बड़े मोतियों के अमृतधारा से हार लटक रहे थे। इन हारों के प्रान्त भाग में निर्मल मणिमालिका निर्मित करवायीं। मरिणयाँ ऐसी लग रही थीं मानो तीन लोक स्थित खानों से नमूने के लिए वहाँ लाई गई हैं। मरिणमालिका के अग्रभाग में स्थित निर्मल वज्रमालिकाए सखियों की