SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२] हैं । मोक्षगामी के लिए शोक करना कदापि उचित नहीं । हे राजा ! साधारण मनुष्यों की तरह प्रभु के लिए शोक करने में आपको लज्जा क्यों नहीं पाती ? शोक करने वाले आपके और सोचनीय प्रभु के लिए शोक करना किसी भी स्थिति में ठीक नहीं है। कारण, प्रभु की देशना जो एक बार सुन लेता है वह हर्ष और शोक से पराभूत नहीं होता। आप तो कई बार प्रभु की देशना सुन चुके हैं। फिर आप शोक के वशीभूत कैसे हो रहे हैं ? जैसे वृहद् समुद्र का क्षोभ, मेरुपर्वत का कम्पन, पृथ्वी का उद्वर्तन, वज्र से कुण्ठत्व, अमृत में विरसता, चन्द्र में ऊष्णता असम्भव है उसी प्रकार प्रापका क्रन्दन भी असम्भव है। हे धराधिपति ! आप धैर्य धारण कर स्वप्रात्मा को समझिए। आप तीन लोक के स्वामी हैं और धैर्यवान् भगवान् ऋषभ के पुत्र हैं। इस प्रकार गोत्र वृद्ध की तरह इन्द्र ने महाराज भरत को प्रबोध दिया। इससे जैसे जल शीतल हो जाता है उसी प्रकार भरत ने अपना स्वाभाविक धैर्य धारण किया । (श्लोक ५१०-५२१) फिर इन्द्र ने प्रभु का अङ्ग संस्कार करने के लिए द्रव्यादि लाने को पाभियोगिक देवताओं को आदेश दिया। वे नन्दन वन से गोशीर्ष चन्दन का काष्ठ ले आए। इन्द्र की आज्ञा से देवों ने प्रभु की देह के लिए पूर्व दिशा में गोशीर्ष चन्दन की एक गोलाकार चिता तैयार की। इक्ष्वाकु कुल में जन्म लेने वाले अन्य महर्षियों के लिए दक्षिण दिशा की ओर एक त्रिकोणाकार और अन्य साधुओं के लिए पश्चिम दिशा में एक चतुष्कोण चिता सजवायी। फिर मानो पुष्करावर्त मेघ हों इस प्रकार देवताओं द्वारा इन्द्र ने शीघ्रतापूर्वक क्षीरसागर से जल मँगवाया । उस जल से प्रभु को स्नान करवाया। फिर उनकी देह में गोशीर्ष चन्दन का लेप किया एवं हंस लक्षणयुक्त देवदूष्य वस्त्र से प्रभु के शरीर को आच्छादित कर दिव्य माणिक्य के अलंकारों से देवाग्रणी इन्द्र ने उसे चारों ओर से विभूषित किया। अन्य देवताओं ने भी इन्द्र की भाँति भक्तिपूर्वक अन्य मुनियों की स्नानादि समस्त क्रियाएं की। फिर देवों ने मानो पृथक-पृथक लायी गयी हों ऐसी तीन जगत् के श्रेष्ठ रत्नों से हजारों लोग ले जा सकें ऐसी तीन शिविकाएं निर्मित कीं। इन्द्र ने प्रभु के चरणों में प्रणाम कर प्रभु की देह को मस्तक पर उठाकर शिविका में रखा।
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy