SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३०५ प्रकार चेदी देश को जागरूक कर वहद वलीवर्द की तरह मालव देश को धर्म धुरा को वहन कराकर, देवताओं को तरह गुर्जर देश को पापरहित कर, वैद्य की तरह सौराष्ट्र देशवासियों को दक्ष कर महात्मा ऋषभदेव शत्रुञ्जय पर्वत पर आए। (श्लोक ३९१-३९५) __ चाँदी के शिखर से मानो वैताढय पर्वत वहाँ आ गया हो, स्वर्ण शिखर से मेरुपर्वत, रत्न खान से जैसे द्वितीय रत्नाचल, औषध समूह से मानो द्वितीय हिमालय हो, शत्रुञ्जय पर्वत ऐसा लग रहा था। आसक्त अर्थात् निकटागत मेघपुञ्ज से उसने मानो श्वेत वस्त्र धारण कर लिया हो और निझरिणी के जल में जैसे उत्तरीय लटक रहा हो इस प्रकार वह सुशोभित हो रहा था। दिन के समय निकटागत सूर्य से मानो उच्च मुकुट धारण कर लिया है और रात्रि में चन्द्र से जैसे चन्दनरस का तिलक कर लिया है ऐसा लग रहा था। आकाश रोधकारी शिखरों से जैसे वह बहु मस्तक विशिष्ट हो और ताल वृक्ष से बहुभुजदण्डयुक्त हो ऐसा प्रतीत हो रहा था। वहाँ नारियलवन में पक कर पीतवर्ण धारणकारी नारियल समूह को देखकर निज शावक भ्रम से बन्दरों के दल इधर-उधर दौड़ रहे थे । आम तोड़ने में रत सौराष्ट्र की रमणियों के गीतों को मृग कान खड़ा कर सुन रहे थे। ऊपरी भाग की भूमि उच्च शूलों के बहाने केतकी के सफेद बाल पाए हैं ऐसे केतकी के जीर्ण वृक्षों से पूर्ण थी। प्रत्येक स्थान पर श्रीखण्ड (चन्दन) वृक्ष के रस की तरह पीत बने सिन्धुवार वृक्ष से जैसे उसने समस्त शरीर में माङ्गलिक तिलक धारण कर लिया है ऐसा लगता था। वहाँ वृक्षों की शाखाओं पर बैठे बन्दरों की पूछों से गुथित तेतुल वृक्ष पीपल व वटवृक्ष-सा लग रहा था । अपनी विशालता के लिए हर्षित हुआ है ऐसे निरन्तर फलप्रसू पनस वृक्ष से वह पर्वत शोभित हो रहा था । अमावस्या की रात्रि के अन्धकार की तरह श्लेष्मात्मक वृक्ष से मानो अञ्जनाचल की चलिका ही वहां आ गई है ऐसा लगता था। सुग्गे की चोंचों की तरह लाल फलयुक्त किंशुक वृक्ष से वह कुकुमतिलकयुक्त वृहद् हस्ती-सा लग रहा था। कहीं द्राक्षासव, कहीं खर्जुरासव और कहीं ताल की मदिरा पान करने वाली भील रमणियाँ पासवासक्तों की मण्डली रच रही थीं। सूर्य की प्रस्खलित किरण रूपी वारणों से भी अभेद्य ऐसे ताम्बूल लता के मण्डप से वह इस प्रकार लग रहा था मानो कवच धारण कर रखा हो। वहां हरी-हरी दूर्वादलों के स्वाद
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy