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________________ ३०४] दीर्घकाल तक संसार भ्रमण कर इसी भरत क्षेत्र में महावीर नामक चौबीसवाँ तीर्थकर होगा।' (श्लोक ३७३-३७९) यह सुनकर प्रभु की आज्ञा ले भरतपति भगवान की ही तरह मरीचि को भी वन्दना करने गए। वहां जाकर मरीचि की वन्दना कर वे बोले - 'पाप त्रिपृष्ठ नामक प्रथम वासुदेव और महाविदेह क्षेत्र में प्रिय मित्र नामक चक्रवर्ती होंगे; किन्तु मैं आपके वासूदेवत्व और चक्रवर्तित्व को वन्दना नहीं कर रहा हूं। आपके इस त्रिदण्डीत्व को भी वन्दना नहीं कर रहा हूं। मैं तो आपको इसलिए वन्दन कर रहा हूँ कि अाप भविष्य में चौबीसवें तीर्थंकर होंगे।' ऐसा कहकर तीन प्रदक्षिणा दे मस्तक पर अञ्जलिबंद्ध हाथ रखकर भरतेश्वर ने मरीचि की वन्दना की। फिर जगत्पति को पुनः वन्दन कर सर्पराज जैसे भोगवती को लौट जाते हैं वे भी अयोध्या लौट गए। (श्लोक ३८०-३८४) भरतेश्वर के जाने के पश्चात् मरीचि तीन बार ताली बजा कर प्रानन्द के आधिक्य से इस प्रकार बोलने लगा-'अोह ! मैं वासुदेवों में पहला वासुदेव बन गा, विदेह में चक्रवर्ती बनूगा और भरतक्षेत्र में अन्तिम तीर्थंकर बनूंगा। मेरे समस्त मनोरथ पूर्ण हुए। समस्त तीर्थंकरों में मेरे पितामह प्रथम हैं, चक्रवर्तियों में मेरे पिता प्रथम हैं और वासुदेवों में मैं प्रथम हूं। अतः इससे मेरा कुल श्रेष्ठ कहा जाता है । हस्तियों में जैसे ऐरावत श्रेष्ठ है, समस्त ग्रहों में जैसे सूर्य श्रेष्ठ है, समस्त ताराओं में जैसे चन्द्र श्रेष्ठ है उसी प्रकार सभी कुलों में एकमात्र मेरा ही कुल श्रेष्ठ है ।' मकड़े जिस प्रकार अपनी लार से तार निकाल कर जाल बुनते हैं और बाद में स्वयं ही उसमें अटक जाते हैं उसी प्रकार मरीचि ने भी स्व-कुल का गर्व कर नीच गोत्र का बन्धन कर लिया। (श्लोक ३८५-३९०) भगवान् ऋषभ गणधरों सहित प्रव्रजन के बहाने पृथ्वी को पवित्र करने के लिए बहिर्गत हुए। कौशल देश के अधिवासियों को पूत्रों की तरह धर्म कुशल कर, मानो परिचित हों ऐसे मगधवासियों को तप में प्रवीण कर, सूर्य जैसे कमल कोश को विकसित करता है उसी प्रकार काशी देश के अधिवासियों को प्रबोध देकर, चन्द्र जैसे समुद्र को ग्रानन्दित करता है उसी प्रकार दशार्ण देश को प्रानन्दित कर, मोह मूच्छितों को जैसे सावधान कर रहे हों इस
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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