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६ वैजयन्ती माता के प्रानन्द नामक पुत्र छठे बलदेव होंगे । उनकी
आयु पिच्चासी हजार वर्ष होगी। ७ जयन्ती माता के नन्दन नामक पुत्र सातवें होंगे। इनका प्रायुष्य
पचास हजार वर्ष का होगा। ८ अपराजिता माता के पद्म नामक पुत्र पाठवें बलदेव होंगे।
उनका प्रायुष्य पन्द्रह हजार वर्ष का होगा । ९ रोहिणी माता के राम नामक पुत्र नवम बलदेव होंगे। उनका आयु बारह सौ वर्ष का होगा।
(श्लोक ३५८-३६६) ___ इनमें पाठ बलदेव मोक्ष जाएंगे और नवमें बलदेव पंचम स्वर्ग में जाएंगे। वहाँ से च्यव कर आगामी उत्सपिणी में इसी भरत क्षेत्र में उत्पन्न होकर कृष्ण नामक तीर्थंकर के तीर्थ में सिद्ध होंगे।
___ 'अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मध, निष्कुम्भ, बलि, प्रह्लाद, रावण और मगधेश्वर ये नौ प्रति वासुदेव होंगे। वे चक्र प्रहारकारी अर्थात् चक्ररूप अस्त्रधारी होंगे। वासुदेव उन्हीं के चक्र से उन्हें मारेंगे।'
(श्लोक ३६७-३६९) इस प्रकार प्रभु की वाणी सुनकर एवं भव्य जीवों से भरी सभा की ओर देखकर भरतपति ने उनसे जिज्ञासा की, 'हे जगत्पति, मानो तीनों लोक ही एकत्र हो गये हों ऐसी इस नर, तिर्यंच और देवमय सभा में क्या कोई ऐसी प्रात्मा भी है जो आपकी ही तरह तीर्थ स्थापित कर इस जगत को पवित्र करेंगे ? (श्लोक ३७०-३७२)
प्रभु ने कहा-'तुम्हारा यह मरीचि नामक पत्र जो प्रथम त्रिदण्डी हुया है आत्त और रौद्र ध्यान से रहित, सम्यक्त्व से सुशोभित होकर चतुर्विध धर्म ध्यान कर एकान्त से ध्यान करता है और इसकी आत्मा कर्दम से रेशमी वस्त्र की भाँति और निःश्वास से दर्पण की तरह अभी कर्म द्वारा मलीन है। स्वच्छ होने वाले वस्त्र की तरह एवं अग्नि-ताप से तप्त-उत्तम स्वर्ण की तरह शुक्ल ध्यान रूपी अग्नि के संयोग से क्रमशः वह शुद्ध हो जाएगा। पहले यह इस भरत क्षेत्र के पोतनप र नामक नगर में त्रिपृष्ठ नाम का प्रथम वसुदेव होगा। बाद में अनुक्रम से यहाँ विदेह में धनंजय और धारिणी का पत्र होकर प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती होगा । तत्पश्चात्