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________________ ३०६] से आनन्दित मृगयूथ वृहद् - वृहद् वृक्षों के तले बैठे रोमन्थन कर रहे थे । मानो अभिजात वैदूर्यमणि हो ऐसे आम्रफल के स्वाद में जिनके नेत्र डूबे हुए हैं ऐसे शुक पक्षियों के द्वारा वह पर्वत मनोहर लग रहा था | केतकी, चमेली, अशोक, कदम्ब और वारसली वृक्षों से वायु द्वारा उड़कर आते पराग से उसकी शिलाएँ रजोमय हो रही थीं और पथिकों द्वारा तोड़े गए नारियलों के जल से उसकी उपत्यका पंकिल हो रही थी । भद्रशाल आदि वनों में से कोई एक बन वहाँ लाया गया है ऐसे विशाल - विशाल अनेक वृक्ष युक्त वन से वह वन मनोहारी लग रहा था । मूल में पचास योजन, शिखर में दस योजन और उच्चता में आठ योजन उस शत्रुंजय पर्वत पर भगवान् ऋषभदेव ने प्रारोहण किया । ( श्लोक ३९६ - ४१६) वहाँ देवताओं द्वारा निर्मित समवसरण में सर्वहितकारी प्रभु बैठे और देशना देने लगे । गम्भीर शब्द से देशना देते समय प्रभु की वाणी उस गिरिराज से टकराकर प्रतिध्वनित हो रही थी इससे लगता वह पर्वत प्रभु के बाद स्व-कन्दरा में बैठकर देशना दे रहा था । चातुर्मास के अन्त में मेघ जैसे वर्षा से विराम पाता है उसी प्रकार प्रथम प्रहर पूर्ण होने पर प्रभु ने देशना से विराम पाया एवं वहाँ से उठकर मध्यमगढ़ में देवताओं द्वारा निर्मित देवछन्द में जाकर बैठ गए । तदुपरान्त माण्डलिक राजा के निकट जैसे युवराज बैठता है उसी प्रकार समस्त गणधरों में प्रधान श्री पुण्डरीक स्वामी मूल सिंहासन के नीचे के पादपीठ पर बैठे और पूर्व की तरह ही सारी सभा बैठ गयी । फिर वे भगवान की ही तरह देशना देने लगे । प्रातःकाल का पवन जैसे हिमरूप अमृत का सिंचन करता है उसी प्रकार उन्होंने भी द्वितीय प्रहर शेष न होने तक देशना दी । प्राणियों के उपकार के लिए इस प्रकार देशना देकर प्रभु अष्टापद की भाँति कुछ दिन वहाँ भी रहे । फिर प्रव्रजन करने की इच्छा से जगद्गुरु ने पुण्डरीक तुल्य पुण्डरीक को आदेश दिया- 'हे महामुनि, मैं यहाँ से अन्यत्र विहार करूंगा । तुम एक कोटि मुनियों सहित यहीं रहो । इस क्षेत्र के प्रभाव से मुनि परिवार सहित तुम्हें प्रत्पदिनों में ही केवल ज्ञान प्राप्त होगा और शैलेशी ध्यान करने के समय मुनि परिवार सहित ही तुम्हें इसी पर्वत के ऊपर मोक्ष प्राप्त होगा ।' 1 ( श्लोक ४१७ - ४२८ ) प्रभु की देशना शिरोधार्य कर उन्हें प्रणाम कर गरणधर
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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