SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२६१ प्रभु ने कहा-'इन्द्र सम्बन्धी, चक्री सम्बन्धी, राजा सम्बन्धी, गृहस्थ सम्बन्धी और साधु सम्बन्धी पाँच प्रकार के होते हैं। ये अवग्रह उत्तरोत्तर पूर्व के बाधक हैं। इनमें पूर्वोक्त और परोक्त विधि से पूर्वोक्त विधि बलवान् है।' इन्द्र बोले-'हे देव, जो मुनि मेरे अवग्रह में विहार करते हैं उन्हें मैंने मेरे अवग्रह की आज्ञा दी।' ऐसा कहकर इन्द्र प्रभु के चरण-कमलों में प्रणाम कर खड़े रहे । यह सुनकर राजा भरत पुनः सोचने लगे- 'यद्यपि इन मुनियों ने मेरे अन्न का अादर नहीं किया फिर भी अवग्रह के अनुग्रह की अाज्ञा से तो मैं धन्य हो सकता हूं।' ऐसा विचार कर श्रेष्ठ हृदय सम्पन्न चक्री ने भी इन्द्र की तरह प्रभु के चरणों के निकट जाकर अभिग्रह की आज्ञा दी। फिर उन्होंने सहधर्मी इन्द्र से पूछा-'यहां लाए अन्न का अब मुझे क्या करना चाहिए ?' इन्द्र ने कहा- 'यह अाहार विशेष गुण सम्पन्न व्यक्ति को दान करो।' भरत ने सोचा-'साधुनों से अधिक गुणवान् पुरुष और कौन हो सकता है ? हाँ, अब समझ गया-निरपेक्ष (वैराग्ययुक्त श्रावक ऐसा ही गुरगवान् होता है । अतः यह उन्हें देना ही उपयुक्त है।' (श्लोक २०५-२१३) ऐसा निश्चय करने के पश्चात् भरत ने स्वर्गपति इन्द्र के प्रकाशमान मनोहर प्राकृति सम्पन्न रूप को देखकर विस्मय से पूछा - 'हे देवपति, आप स्वर्ग में भी इसी रूप में रहते हैं या अन्य किसी रूप में ? कारण, देव तो कामरूपी होते हैं।' (श्लोक २१४-२१५) इन्द्र बोले-'राजन्, स्वर्ग में मेरा ऐसा रूप नहीं होता । वहाँ जैसा रूप होता है उसे मनुष्य देख भी नहीं सकते।' भरत बोले-'आपके उस रूप को देखने की मेरी प्रबल इच्छा है। अतः हे स्वर्गपति, चन्द्र जैसे चक्रवाक को प्रसन्न करता है उसी प्रकार आप भी अपनी स्व-प्राकृति दिखाकर मेरे नेत्रों को प्रसन्न करें।' ___ इन्द्र बोले- हे राजा, तुम उत्तम पुरुष हो । तुम्हारी प्रार्थना व्यर्थ होना उचित नहीं है। इसलिए मैं तुम्हें अपना एक अङ्ग दिखाऊँगा।' तब इन्द्र ने उचित अलङ्कारों से सुशोभित और जगत्
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy