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________________ २८६] हो रहा हो ऐसा एक रत्न छन्द निर्मित किया । उसके मध्य पूर्व दिशा में विकसित कमल - कोश के मध्य करिणका से पाद- पीठ सह एक रत्न सिंहासन लगाया और उसके ऊपर मानो गंगा की प्रवृत्ति किए तीन-तीन प्रवाह हों ऐसे तीन छत्र लगाए। इस प्रकार जैसे पूर्व में कहीं बनाकर रखा हुआ था उसे वहीं से लाकर यहाँ स्थापित कर दिया गया हो इस भाँति क्षरणमात्र में देव और असुरों ने मिलकर वहाँ समवसरण की रचना कर दी । ( श्लोक १०५ - १२९) जगत्पति ने भव्यजनों के हृदय की तरह मोक्षद्वार रूप उस समवसरण में पूर्वद्वार से प्रवेश किया। उस समय शाखा के प्रान्त पल्लव जिसके अलंकार तुल्य हो गए थे ऐसे प्रशोक वृक्ष की उन्होंने प्रदक्षिणा दी । फिर प्रभु पूर्व दिशा में आकर 'नमस्तीर्थाय' कहकर राजहंस जैसे कमल पर बैठता है उसी प्रकार सिंहासन पर बैठे । व्यन्तर देवताओं ने उसी समय शेष तीन दिशाओंों के सिंहासन पर भगवान् की तीन प्रतिमाएँ रचीं । फिर साधु-साध्वी और वैमानिक देवताओं की स्त्रियों ने पूर्व द्वार से प्रविष्ट होकर भक्ति सहित जिनेश्वर और तीर्थ को नमस्कार किया । प्रथम गढ़ में प्रथम धर्म रूपी उद्यान के वृक्षरूप साधु पूर्व और दक्षिण दिशा के मध्य बैठे । उनके पीछे की ओर वैमानिक देवों की स्त्रियाँ खड़ी रहीं और उनके पीछे उसी प्रकार साध्वियाँ खड़ी रहीं । भुवनपति ज्योतिष्क प्रौर व्यन्तर देवों की पत्नियाँ दक्षिण द्वार से प्रविष्ट होकर पूर्व विधि अनुसार प्रदक्षिणा और नमस्कार कर नैऋत्य दिशा की ओर बैठ गयीं और तीन जाति के देवगरण पश्चिम द्वार से प्रवेश कर विधि अनुसार नमस्कार कर अनुक्रम से वायव्य कोण में बैठ गए। इस प्रकार प्रभु को समवसरण में विराजमान हुए जान अपने विमान के समूह से प्रकाश को प्राच्छादित कर इन्द्र शीघ्र ही वहाँ आए और उन्होंने उत्तर द्वार से समवसरण में प्रवेश किया । भक्तिवान् इन्द्र प्रभु की तीन प्रदक्षिणा देकर इस प्रकार स्तुति करने लगे : I ( श्लोक १३० - १४० ) 'हे भगवन्, जब आपके गुणों को सब प्रकार जानने में उत्तम योगी भी असमर्थ हैं तब आपकी स्तुति करने लायक गुरण कहाँ और मैं नित्य प्रमादी स्तुति करने वाला मैं कहाँ ? फिर भी हे स्वामी, यथाशक्ति आपके गुणों की स्तवना करूँगा ? पंगु व्यक्ति को क्या कोई पथ पर चलने से निषेध करता है ? हे प्रभो, इस संसार
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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